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पकड़ का छूटना संन्यास की पहल
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___ संसार से मुक्त होने के लिए संसार की पकड़ छोड़ो। जीवन के अतीत को पढ़ोगे तो पकड़ ढीली होगी। जीवन का अतीत ठीक वैसा ही है जैसे उपन्यास के पढ़े हुए पन्ने होते हैं। मरते वक्त कोई हमारे साथ नहीं होता, साथ होती है केवल स्मृतियों की पोटलियां। स्मृति उतनी ही तीव्रतर और प्रगाढ़तम होती है, जितनी मजबूत पकड़ होती है। धन नहीं, वरन् धन की पकड़ छोड़ना जरूरी है। संसार की बजाय संसार की पकड़ छोड़नी चाहिए। पकड़ का छूटना ही जीवन में 'संन्यास का शंखनाद' है।
त्याग के दो रूप होते हैं, जिनमें एक बाहरी है और दूसरे का सम्बन्ध हमारे भाव-जगत से है। धन को छोड़ना, त्याग का गेरुयां बाना पहनना है। धन की पकड़ छोड़ना मन को रंगाना है। 'मन न रंगाये, रंगाये जोगी कपड़ा', मुक्ति अब तक इसलिए न मिल पायी क्योंकि घरबार के त्याग को ही सर्वाधिक महत्त्व दिया। एक मत के अनुसार मुक्ति पाने के लिए मुनि बनना अनिवार्य है और मुनि बनने के लिए 'नग्न' होना पहली शर्त है। उसके अनुसार मुनि तब तक मुनि नहीं, जब तक वह 'नग्न' नहीं है। उसका कहना है कि महिलाएं मुक्ति नहीं पा सकती, इसलिए क्योंकि वे 'निर्वस्त्र' नहीं हो सकती।
त्याग की यह मिसाल बाहरी पहचान भले ही हो जाय, पर अन्तर-क्रान्ति का वस्त्रों को रंगाने और हटाने से कोई
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