Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 61
________________ ५६ भगवत्ता फैली सब ओर और आदमी के प्राण फूल कर कुप्पे हो गये। धन घटा तो प्राण सूख गये। क्योंकि प्राण तिजोरी में अटके हैं। पहले 'नूरजहां' में प्राण अटके थे, बाद में 'ताजमहल' में। अगर यह कहते हो कि 'लैला-मजन' और 'हीर-रांझा' में सात जन्म का प्रेम है तो इसका अर्थ यह हुआ कि तुम्हारी पकड़ एक जन्म की नहीं, बल्कि जन्म-जन्मान्तर की है। इसलिए अगर पकड़ ढीली हो जाए तो मुक्ति के आसार साफ नजदीक हो आयेंगे। दो बच्चे आपस में झगड़ रहे थे। एक कह रहा था, तू झूठ बोल रहा है-'वह कार मेरी है। दूसरे ने तेवर बदलते हुए कहा कि नहीं वह मेरी कार है। मैंने सोचा ये बच्चे किस कार के लिए झगड़ रहे हैं क्योंकि वहाँ तो कोई कार थी ही नहीं। मैंने उनसे झगड़ने का कारण पूछा तो वे कहने लगे कि हम खेल, खेल रहे हैं। खेल यह है कि रास्ते पर गुजरने वाली कार को जो पहले देख लेगा वह उसकी होगी। मेरा एक सौ बारह प्वाइंट है और इसका एक सौ तेरह । अभी कुछ सेकेण्ड पहले यहाँ से जो कार गुजरी, यह कहता है कि पहले कार पर उसकी नजर पड़ी, जबकि मेरा दावा यह है कि पहले तो मैंने ही देखी थी। मैंने पाया कि यह खेल नहीं वास्तव में मेरेपन की पकड़ है। रोड पर चलने वाली कार को भी हम अपनी कहने पर तुले हुए हैं। भिखारी सड़क पर बैठते हैं और उसे भी अपनी मान लेते हैं। जहाँ जो भिखारी भीख मांगता है, वहां कोई दूसरा नहीं बैठ सकता। मानो उन्होंने वहीं बैठने का बीमा करा रखा हो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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