Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 74
________________ ध्यान : मार्ग एवं मार्गफल आत्मा तो जीवन की आजाद हस्ती है। इसकी अनुभूति नितान्त निजी और व्यक्तिगत होती है। खुफिया भी इतनी कि किसी को कानोंकान खबर भी न हो। इसलिए अध्यात्म की प्रयोगशाला में होने वाले आत्मा के अनुभव प्रात्यन्तिक गोपनीय रहते हैं। विज्ञान के क्षेत्र में जो महत्त्व 'प्रयोग' का है, अध्यात्म के क्षेत्र में वही 'अनुभव' का है। विज्ञान के प्रयोग ही अनुभव हैं और अध्यात्म के अनुभव ही दूसरे शब्दों में 'प्रयोग' हैं। विज्ञान का मार्ग प्रयोग से अनुभव की ओर ले जाता है जबकि अध्यात्म, अनुभव को ही प्रयोग मानता है । इसलिए अगर तुम वैज्ञानिक बुद्धि रखते हो तो अध्यात्म के मार्ग पर तुम्हारी बुद्धि बाधा बन जायेगी। बात-बात में शक-शुबह होगा। यहाँ प्रत्यक्ष प्रयोग कम, संकेत ही अधिक मिलेंगे। निजत्व की प्रयोगशाला, है ही कुछ ऐसी। अध्यात्म की डगर पर पांव अंगड़ाई ले, सौभाग्य की बात है, जहाँ से चल रहे हो अच्छी तरह से पहले आश्वस्त हो लो। कहीं ऐसा न हो कि पाँव बढ़ने के बाद तुम्हें प्रस्थान बिन्दु या पदचिह्न याद आये। संन्यास, आत्मा के प्रति विश्वास है। यह संसार की स्मृति नहीं वरन् संसार की विस्मृति है। जिसे संसार की सही समझ पैदा हो गई, वह संन्यास के माहौल में आकर संसार की याददाश्ती से नहीं गुजरते । संसार का राग, संसार छोड़ने से नहीं टूटता वरन् समस्त पूर्वक आने वाली निर्लिप्तता से छूटता है। मुक्ति के दो ही सूत्र हैं-सर्वप्रथम तो यह अहसास हो कि जहाँ हम हैं, वहाँ आग धधक रही है और दूसरा यह कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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