Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ ध्यान : मार्ग एवं मार्गफल 'कुन्दकुन्द', प्रात्मवाद के प्रस्तोता हैं। उनके चिन्तन के सारे कबूतर, आत्मा के ही आकाश में उड़ते हैं। वे चाहे जिस मार्ग की चर्चा करें, उस मार्ग का मार्गफल तो आत्मा में ही निष्पन्न होगा। इसलिए आत्मा ही उनका आदर्श है और आत्मा ही यथार्थ है। ___ 'पात्मा' एक ऐसा शब्द है जो अपनी संचेतना का, सेल्फ कॉन्सियसनेस का पर्याय है। यह, वह ऊर्जा है जो मन, वचन और शरीर/बदन में रहते हुए भी उनसे अलग भी अपना अस्तित्व रखती है। प्रात्मा का कभी-कभी मन के पर्याय रूप में भी उपयोग किया जाता है। आदम लोग आत्मा को भौतिक वस्तु मानते थे। खून और सांस जैसी चीजें ही आत्मा कहलाती थीं। अब ऐसा नहीं है। यह सही है कि सांस आत्मा की परिचायक है। पर आत्मा पूर्णतः सांस नहीं है। वह तो सब सांसों के सांस में है। सांस तो शरीर और आत्मा के संयोग को बनाये रखने की कड़ी है। इसलिए अगर आत्मा अनुभूति है तो सांस उसकी अभिव्यक्ति । धर्म में प्रात्मा को अशरीरी माना जाता है। यह वह शक्ति है, जो भिदती नहीं है इसलिए अभेद्य है, यह मरती भी नहीं है इसलिए यह अमर है । यह जन्म और मृत्यु के बीच ही नहीं, जन्म और मृत्यु के पार भी अस्तित्व बनाये रखने में समर्थ है। आत्मा, मरणधर्मा नहीं है मरण धर्मा तो शरीर है। आत्मा तक मृत्यु की पहुँच नहीं है। पर हाँ, मृत्यु उन सबको तो गिरा ही डालती है जिनसे 'आत्मा' अभिव्यक्त होती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116