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भगवत्ता फैली सब ओर
को महत्त्व देने वाला ही शान्ति को समझ सकता है और भीतर तथा बाहर के अन्तर्द्वन्द्व से मुक्त निर्द्वन्द्व हो सकता है । वास्तव में भाव ही गुण दोषों का मूल कारण है, बाहर का त्याग और भीतर का त्याग ऐसी दोहरी भूमिकाओं की बजाय हमें उस तल पर श्राना चाहिए, जहाँ बाहर-भीतर का भेद ही न रहे। जीवन में ऐसी रोशनी प्रकट हो जानी चाहिए जो भीतर और बाहर समान रूप से प्रकाश फैलाये, अन्धकार हटाये ।
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