Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 40
________________ सजल श्रद्धा में निखरती प्रखर प्रज्ञा आत्मा को लगाकर खायोगे। परमात्मा को तो प्रार्थना से मना भी लोगे, मगर स्वयं को ही छल रहे हो तो कहाँ जानोगे ? कौनसी प्रार्थना आपको बचाएगी? व्यक्ति के पास बहुत कुछ है। वह जानता भी है, लेकिन उसका आचरण इसके विपरीत है। आदमी ऊपर से प्रार्थना करता है और दुकान में जाकर मिलावट कर लेता है । यह दोगलापन उसे रसातल में ले जाता है। कभी सोचा है कि कथनी और करनी का अन्तर पापको कहाँ ले जा रहा है ? जब भी ऐसा करोगे तो अपने जीवन में मिथ्यात्व को जन्म देते चले जाओगे। मिथ्यात्व की परिभाषा यही है। व्यक्ति भीतर सोचे कुछ और बाहर करे कुछ। हमारे भीतर वासना जितनी गहरी पैठी है, मुक्ति की चाह भी उतनी ही गहरी होगी, तभी हम मुक्त हो सकेंगे। ___ मनुष्य वासना से आसानी से मुक्त नहीं हो पाता। वासना उसे दिन में भी और रात में भी घेरे रहती है । वासना का अर्थ केवल सेक्स या 'काम' से नहीं है। छल-कपट, दूसरों को धोखा देना, झूठ बोलना, किसी का बुरा चाहना--ये सब भी वासना ही हैं। चेतन-अचेतन अवस्था में पूरा शरीर वासना में डूबा रहता है। वासना से मुक्त होने के लिए मुक्ति की कामना भी तीव्रतम होनी चाहिए। फिर तो श्रद्धा आपके सूने में खिल-खिलाहट बिखेरेगी, वीराने में हरियाली ले आएगी। मूल तक पहुँच जानोगे तो श्रद्धा महोत्सव मनाएगी। इसलिए अपनी आत्मा की सच्चाई को परखना जरूरी है। ईमानदारी से प्रयास करना जरूरी है। एक लड़का किसी बगीचे में गया। उसने देखा, बगीचे में माली नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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