Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 51
________________ ४६ भगवत्ता फैली सब प्रोर भी सम्यक् हो और तटस्थता भी । दर्शन उनके सम्यक् स्वरूप को जांचने और बनाये रखने का अभियान है । दर्शन दीया है । रोशनी भीतर भी हो और बाहर भी । जागरुकता भीतर भी रहे और बाहर के प्रति भी । अन्दर हो अंधियारा और बाहर रहे उजियारा या भीतर हो उजियारा और बाहर हो अंधियारा, तो यह रोशनी जीवन- क्रान्ति नहीं, वरन् क्रान्ति के प्रति बगावत है । हुलमुलापन कारगर नहीं होता । रोशनी तो बाहर-भीतर दोनों ओर रहनी चाहिए । कुन्द - कुन्द के शब्दों में वह रोशनी दर्शन ही है । इसलिए दर्शन देहली पर रखा वह दीया है, जिसके प्रकाश का विस्तार बाहर - भीतर समान है । जो भीतर है, आखिर उसे तो अभिव्यक्त होना ही चाहिए। जो बाहर है अगर वह भीतर नहीं है तो बाजार का अमीर घर का दिवालिया होगा । 1 जीवन संगीत है । भला संगीत में कहीं कोई दुर्भाांत होती है ! मंच का संगीत तो अभिनय है । संगीत का असली आनन्द तो घर में है । आनन्द घर में भी लो और मंच पर भी । केवल गुदड़ी के गवैये ही मत बनो । दर्शन, भीतर और बाहर दोनों के बीच एक आयोग स्थापित करता है जिसका उद्देश्य दोनों में एकरूपता और निकटता लाना है । T कुन्दकुन्द ने दो प्रतीक चुने हैं, जिनमें एक तो है 'फूल' और दूसरा है 'दूध' । फूल की दो विशेषताएं हैं- सुगन्ध और सौन्दर्य । फूल की तरह दूध में भी दो विशेषताएं हैं। दूध की दो विशेषताएं -माखन और उज्ज्वलता है । भीतर हो खुशबू और बाहर रहे सौन्दर्य, यही तो फूल की विशिष्टता है | दूध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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