Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 34
________________ अज्ञान की स्वीकृति-ज्ञान की पहली किरण २६ तो वे आदमी को अहंकार की तरफ ले जाएंगे। व्यक्ति के भीतर सत्य को पाने की प्यास होगी तो वह विद्वता की ओर वढ़ेगा। पण्डित होना एक बात है और ज्ञानी होना दूसरी। दुनिया में पण्डितों की कमी नहीं है। लेकिन सत्य को पाने की इच्छा रखने वाले और सत्य को पाने वालों की संख्या में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। पण्डित तो भरे पड़े हैं। आप किसी साधु के यहाँ जाकर उसके चरणों में क्यों झुकते हैं ? इसलिए कि उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया है, उनकी विनम्रता, सत्य और चरित्र हमें झुकने की प्रेरणा देता है। आत्म-ज्ञानी और एक प्रोफेसर में यही अन्तर है। प्रोफेसर खूब किताबें पढ़ता है मगर उससे लोग नहीं जुड़ पाते, पुजारी दिन भर मन्दिर में रहता है मगर उसे मोक्ष मिल जाएगा, यह जरूरी नहीं है। वह पूजा तो भगवान की करता है, मगर उसकी नजरें इस बात पर लगी रहती हैं, कौन भक्त आया ? किसने, कितना चढ़ावा चढ़ाया। इसलिए जरूरत है ज्ञान की असली प्यास जगाने की और इसके लिए जरूरी है कि हम अपने अज्ञान को स्वीकार करें। यही ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उठाया जाने वाला पहला और सार्थक कदम होगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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