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भगवत्ता फैली सब ओर
की बात थी। क्योंकि इसका अर्थ था कि यह व्यक्ति 'इंदिका' यानी भारत की विशिष्ट यात्रा कर पाया है।
___एक महानतम यात्री इब्न बन्तूत ने यात्राओं एवं चर्चाों से ही ज्ञान के कई रहस्य जाने। उसने पच्चीस वर्ष की अपनी यात्राओं में सवा लाख किलोमीटर की दूरी तय की।
सिकन्दर के बारे में हम यह तो सभी जानते हैं कि वह महत्त्वाकांक्षी था, किन्तु वह ज्ञान एवं शिल्प का भी जिज्ञासु था। उसने मिस्र में एक शहर विकसित किया, जिसका नाम था 'सिकन्दरिया' । वहाँ उसने म्यूजेनोन और पुस्तकालय बनाया। वास्तव में यह जबरदस्त विश्वविद्यालय था। यही पहला विज्ञान-अकादमी था। सिकन्दर ने भी खूब ज्ञान-चर्चाएं की। अरस्तू उसके जीवन-गुरु थे।
जिस व्यक्ति में भी ज्ञान की प्यास है, सम्भव हो, तो वह एक बार विश्व-यात्रा अवश्य करे, खूब जाने और फिर घर लौटकर सबके बारे में चिन्तन-मनन करे। दीप से दीप जलता है और ज्ञान से ज्ञान बढ़ता है। जब भी समय मिले, शान्त वातावरण में बैठे और फिर उस सत्य एवं ज्ञान को भी उजागर करने का प्रयास करे, जिसकी सम्भावना स्वयं में है।
तो चर्चा करोगे तो, ज्ञान मिलेगा। भीतर प्यास का दीया जलाए रखने की जरूरत है। जिज्ञासा नहीं है तो कुछ न मिलेगा। ज्ञान के दो पहलू हैं। एक, या तो ज्ञान हमें सत्य तक पहुँचा देगा, या आदमी आत्म-बोध तक पहुँच जाएगा। मन में यदि स्वयं को पण्डित बनाने के भाव होंगे,
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