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भगवत्ता फैली सब ओर
वह कह रहा था – 'पच्चीस पैसे का एक गिलास पानी ।' लोग उसे पच्चीस-पच्चीस पैसे थमाने लगे और पानी पीने लगे । एक आदमी ने कहा- 'भाई ! तुम तो बहुत ज्यादा पैसे मांग रहे हो । ज्यादा से ज्यादा दस पैसे ले लो। मैं तो दस पैसे ही दूंगा।' लड़का आगे बढ़ गया। जब वह बाल्टी खाली कर लौटने लगा तो वही आदमी बोला - 'लामो ! पन्द्रह पैसे ले लेना ।' लड़के ने कहा - 'अब तो आप एक रुपया दें तो भी मेरे पास पानी नहीं है ।' असल में उसने पानी की कीमत तो देखी, मगर अपनी प्यास को नहीं मापा, इसलिए अपनी प्यास नहीं बुझा पाया ।
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प्यास जितनी तेज होगी, पानी तक पहुंच उतनी ही प्रबल होगी और आप पानी ढूंढ़ निकालेंगे । आपकी प्रबलता रेगिस्तान में भी नखलिस्तान ढूंढ़ लेगी । असली मूल्य प्यास का है । जिज्ञासा का है। भीतर कहीं न कहीं, कोई न कोई लक्ष्य बना हुआ होगा तो ऐसा आदमी अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए दूर तक बिना किसी बाधा चला जाएगा और लक्ष्य भी माला लेकर उसका इंतजार करता मिलेगा । भीतर की ललक ही काम आती है। गंगा का पानी लेने लोग ऋषिकेश तक आते हैं मगर यह गंगा तो आपके गांव में भी बह रही है । असली मूल्य प्यास का है। मंदिर तो आपके गांव में भी है, फिर आप तीर्थ करने क्यों जाते हैं, इसलिए, ताकि हमारी प्यास और तेज हो जाए। हमारी प्यास को जो और तीव्र कर सके, वही तो तीर्थ है ।
साधक वह है जो सुनता है। सुनने का अर्थ यह है कि वह अपनी प्यास को और तेज कर रहा है । गांधी के तीन
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