Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 25
________________ भगवत्ता फैली सब ओर ज्ञान में प्रवेश कर सको। स्वयं के बलबूते पर प्रवेश की हिम्मत है, तो इसके मुकाबले तो कोई रास्ता ही नहीं है। लेकिन पांव में यदि बैसाखी के सहारे चलने की प्रवृत्ति है, तो किसी ज्ञानी का सहारा लेना ही पड़ेगा। किसी ऐसे दीए के पास जाकर बैठना ही होगा, जो ज्योतिर्मय है। हम गुरु के पास इसलिए जाते हैं, क्योंकि हमारा दीया बुझा हुअा है और गुरु का दीया जला हुआ है। जलते दीए को देखकर ही बुझे दीए को जलने की प्रेरणा मिलती है। इसी का नाम ही तो सत्संग है। जीव का बोध कैसे हो ? आत्मा को आत्मा का भान कैसे हो? चेतना को चेतना का पता कैसे चले, इसलिए तो सत्संग में जाते हैं। इसलिए उन लोगों के पास जाकर बैठो, रमो, नाचो, झूमो, गाओ, जिन लोगों ने कुछ पाया है। जो हकीकत में 'श्रमण' सत्य-द्रष्टा बन चुके हैं, उनके पास जाओ; उनके अनुभवों को सुनो। वे अपने अनुभव न बताएं तो भी उनके पास जाकर बैठो। उनके पास बैठने से भी सत्संग होगा। कमल खिल रहा है तो यह तो तय है कि आकाश में सूरज चमक रहा है। आकाश में सूरज चढ़ने पर कमल को खिलना ही पड़ता है। अगर आपके भीतर का कमल खिल रहा है, तो जान लेना कि गुरु में सूर्य जैसी चमक है। कमल जरूर खिलेगा। आप जितनी गहरी जिज्ञासा लेकर जाएंगे, सत्य की उपलब्धि उतनी ही तीव्रतर होती चली जाएगी। सच्चाई को पाने के दो रास्ते हैं। पहला रास्ता है जिज्ञासा। जिज्ञासा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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