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जिएं जीवन-का-दर्शन
मुमुक्षुत्रों के लिए है। उन मुमुक्षुत्रों के लिए जो वासना मुक्त निर्वाण मार्ग के इच्छुक हैं।
__अगर मैं कुन्दकुन्द पर बोल रहा हूँ तो इसका एक मात्र कारण यही है कि जैसा मैंने सत्य जाना है, वह बहुत कुछ अंशों में कुन्दकुन्द में भी विद्यमान है। कुन्दकुन्द ने भी एक प्रकार से महावीर को ही दोहराया है। बहुत बड़ा दिल कीजिएगा कुन्दकुन्द की क्रांति स्वीकार करने के लिए। जिस 'अष्ट पाहुड़' से मैं कुन्दकुन्द की पाठ गाथायें ले रहा हूँ, वह एक प्रकार से क्रांति का अष्टक है। बहुत कुछ सम्भावना है कि वे विस्फोट करें, पर ऐसा करना जरूरी भी है। वही तो असली गुरु है, जो सामने वाले को असली गुरुत्व का स्वाद चखा दे। ऊपर-ऊपर से कहेंगे तो सुनने में तो अच्छा लगेगा, पर जीवन रूपान्तरण उससे न हो पाएगा। फिर तो नतीजा यह होगा कि तप भी करोगे और साथ-साथ क्रोध भी करते चले जाओगे। साधु भी बन जानोगे, पर वासना और लोकेषणा तब भी बनी रहेगी। मन्दिर में भी जानोगे, वहाँ वीतरागता की उपासना न करके संसार की ही याचना करोगे।
और, कुन्दकुन्द जीवन मूल्यों में यह दोगलापन पसन्द नहीं करते। इसीलिए कुन्दकुन्द इस बात की तो कल्पना कर सकते हैं कि चारित्र्य से गिरा हुआ आदमी मुक्त हो सकता है किन्तु भीतर के भावों में गिरा हुआ आदमी निर्वाण नहीं पा सकता।
दसणभट्ठो भट्ठो, दसण भट्ठस्स पत्थि णिव्वाणं । सिझंति चरियभट्ठा, दंसरणभट्ठा रण सिझंति ।।
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