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भगवत्ता फैली सब प्रोर
क्या धर्म उनके लिए नहीं है ? जीवन की मूल बुनियादों को शिक्षा, संस्कार, सेवा, सद्भावना और स्नेह से जोड़नी चाहिए। धर्म को हम सबके साथ जोड़े। बच्चे के लिए बच्चे का धर्म हो, युवक के लिए युवक का धर्म हो और बूढ़े-बुजुर्गों के लिए धर्म का अन्तिम सोपान हो । अगर ऐसा न हुआ तो धर्म बूढ़ा हो जाएगा और बूढ़ों के लिए ही रह जाएगा । धर्म वास्तव में एक सम्पूर्ण जीवन है, जीवन की सम्पूर्णता है । वह शिशु भी है, उसका शैशव भी है। वह युवा भी है, उसका यौवन भी है। वह वृद्ध भी है उसे बुढ़ापा भी घेरता है । धर्म तो आत्मा का स्वभाव है, जीवन का दर्शन है ।
दर्शन जीवन का वास्तविक दर्शन है। धर्म की मौलिकता दर्शन में है, जीवन को देखने और उसे जीने में है । जीवन जीने के लिए है, जब तक जिन्दा हो तब तक जिन्दा हो और जब तक जिन्दा हो तब तक तुम्हारी मृत्यु नहीं हुई है । जब तक मृत्यु न हो तुम्हें जीवित रहना है। जीते हुए जीवित रहना है । जीवंत होकर जीना है । दर्शन का यही जीवन है और यही जीवन का दर्शन है ।
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