Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 11
________________ भगवत्ता फैली सब ओर गुजरे, हम भी उसी राह से गुजर रहे हैं क्योंकि जीवन का स्रोत तो सभी का एक ही है। उसमें कहीं अन्तर नहीं है । सभी मां के उदर से ही पा रहे हैं। न तो भगवान आकाश से टपकते हैं और न हम पाताल फोड़कर बाहर निकलते हैं। जीवन के स्रोत सबके एक जैसे हैं । जीते सभी हैं। जीवन के मार्ग से गुजरते सभी हैं, मगर अनुभव बटोरने वाले कुछ ही लोग होते हैं। अधिकांश लोग तो खाली हाथ ही गुजर जाते हैं। फूल तो खिलते हैं, क्योंकि उनका काम ही खिलना है। ढेर सारे फूल खिलते हैं और मुरझा जाते हैं। समझदार आदमी तो वह होता है जो फूलों की देरी को सुई-धागे की मदद से पिरो कर माला बना लेता है, मगर उससे भी अधिक समझदार आदमी वह होता है जो इन फूलों का इत्र निकालने में सफलता हासिल कर लेता है। ___ इसलिए केवल अनुभव पा लेना ही पर्याप्त नहीं है, उन्हें संग्रहित कर संपादित कर लेना भी जरूरी है। ऐसा आदमी प्रज्ञाशील है। माला तो कोई भी बना लेगा, मनीषी तो वह है जो उन फूलों में छिपी खुशबू और इत्र को निकाल लेता है। एक हजार फूलों की एक माला बनी। उस माला से एक बूद इत्र निकाल लिया, यही तो अनुभवों की सार्थकता है। यही तो जीवन का सार है। मूल पाठ पढ़ना है । फूलों को एकत्र करना, उसकी माला बना लेना ही काफी नहीं है । उन फूलों को निचोड़ कर इत्र निकाल लेना ही असली काम है। 'सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय ।' सार निकालना ही महत्वपूर्ण है, मूल्यवान है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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