Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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(XVIII)
___ . परम गुरु भक्त आपश्री ने गुरु देवों द्वारा स्थापित संस्थाओं पाठशालाओं को अत्यंत जागरुकता व निष्ठा के साथ सम्भाला है साथ ही गुरुदेवों की योजनाओं व स्वप्नों को साकार रूप देने की दिशा में कई सबल कार्य पूर्ण कर लिए हैं। और कई कार्य पूर्णता की ओर अग्रसर हैं। बड़ौदा में बनी श्री विजयवल्लभ सार्वजनिक हॉस्पिटल, बोडेली का महातीर्थ के रूप में परिवर्तन, गांव-गांव में मंदिर और पाठशालाओं का निर्माण कांगड़ा तीर्थोद्धार, मुरादाबाद में जिनशासन रत्न प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयसमुद्र सूरीश्वर जी म. सा. का समाधिमन्दिर आदि कार्य पूर्ण किए जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक वल्लभ स्मारक का कार्य पूर्णता की ओर अग्रसर है। जिसकी प्रतिष्ठा आपकी निष्ठा में हो रही है।
आप श्री के चरणकमल गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, जम्मू, काश्मीर जहां भी पड़े हैं वहीं दीक्षा महोत्सवों अन्जनशलाका प्रतिष्ठाओं, उपधान तपों, पैदल यात्रा संघों आदि अनेकानेक धार्मिक कार्यक्रमों व महोत्सवों की धूम मच जाती है।
साध समाज में अग्रगण्य परमार क्षत्रियोद्धारक गच्छाधिपति प. पू. आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज साहब की दिनचर्या, प्रवचन, शैली, सरसवाणी, मधुर व्यवहार, अगाध गुरुभक्ति आदि गुण सकल श्रीसंघ केलिए श्रद्धास्पद हैं।
आज भी आपश्री अहर्निश धर्मध्यान व तपश्चर्या के साथ जैन धर्म व समाज की समुपस्थित समस्याओं के निराकरण जैन समाज व धर्म के निरन्तर उत्थान व विकास के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। आपकी निश्रा में विजय वल्लभ स्मारक की अंजनशलाका, प्रतिष्ठा संपन्न हो रही है। आपकी परम कृपा से इस पुस्तक के प्रकाशान में आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है। इसी प्रकार भविष्य में आपकी कृपा बनी रहे।
इस शोधग्रंथ के प्रकाशन केलिये बाचार्य श्री की प्ररेणा से राशि प्राप्त हुई है जिसका विवरण अन्यंत्र में दिया है अतः आपकी इस कृपा केलिये कोटिशः धन्यवाद
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