Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 163
________________ १२८ यात्री यात्रीसंघ . ५. इसी तीर्थमाला में लिखा है कि यहां से ६० मील चंपा नगर था । इसी तीर्थमाला में सम्मेतशिखर तीर्थ से ऋजुबालुका नदी के तट पर जंभीग्राम में भगवान के केवलज्ञान स्थल में भगवान महावीर के मंदिर का महत्वपूर्ण उल्लेख है। ७. मुनिप्रभसूरि कृत तीर्थमाला इस तीर्थमाला में माहन - खत्तियकुंडगाम में मंदिर का महत्वपूर्ण उल्लेख ८. श्रीपति भैरव कृत तीर्थमाला श्री विजयदान सूरि शिष्य श्रीपति नाम से युक्त भैरव कृत तीर्थमाला में अलवर के संघ के वर्णन में पावापुरी से विहार करके तुंगिया होकर क्षत्रियकुंडब्राह्मणकुंड यात्रा का उल्लेख है। खत्रियकुंड सोहमणउ जिहां जन्मया चरम जिनंद । आज तीर्थनउ राजियउ जसु सेवत हो चउसठी इंद ।। ६२ । । कोश त्रिणिजिहां थी अच्छूइ माहणकुंड सुखेव । सुर सुख भोगीय अवतर्यो तिण वीरई किय ठाम पवित्त । । ६३ ।। जिनहर ने नमि चालिया इम नगर उपरी अधकोस । जन्मभूमि जिन गुणथुनूं हिव रसिया बहु भव चो दोस । । ६४ । । काकंदीनगरी कही एक योजन गाउ एक ( पांच मील) । सुविधिनाथ तिहां जनमियां ते थान कहो थुणउ धरिय विवेक । चउदस सहित मुनिवर भला तिहां मई प्रशंसई धीर । । ६५ । । भद्रानंदन जोइ धन्य धन्ना हो साहस धीर । । ६६ ।। अर्थात् - क्षत्रियकुंड बहुत सुहावना है जहां अंतिम तीर्थंकर (महावीर) ने - जन्म लिया। वे इस तीर्थ के स्वामी हैं जिन की चौसठ इंद्रों ने चरण पूजा-सेवा की है। यहां से तीन कोस ब्राह्मणकुंडग्राम सुखदाता है। जहां देवलोक का सुख भोग कर (महावीर) अवतरित हुए और इस भूमि को पवित्र किया। यहां प्रभु महावीर के मंदिर में वंदना - नमस्कार कर आधा कोस से अधिक चलकर भगवान महावीर की जन्मभूमि पर संघ पहुंचा। यहां प्रभु महावीर के मंदिर में प्रभु के गुणों की स्तवना कर बहुत भवों के कर्मदोषों की निर्जरा की। यहां से पांच मील चलकर काकंदी नगरी पहुंचे जहां नौवे तीर्थंकर सुविधिनाथ ने जन्म लिया ।

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