Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 166
________________ नियक १३१ १. यहा कवि ने पद्य २ से ४.में क्षत्रियकुंड के पर्वत पर वसंत शत में पुष्पवाटिका में नाना प्रकार को सुगंधित पुष्पों का वर्णन करते हुए वहां मलयाचल की चलती वायु द्वारा पुष्पों की सुगंध, सुगंधित पर्वतशिखर और सुगंधी से आकर्षित होकर पुष्पों पर भमर वृद की शोभा का वर्णन लिखा है। २. वहां से संघ भगवान सुविधिनाथ की जन्मभूमि काकंदी में पांच कोस गया वहां पूजा सेवा की। बिहार से काकंदी २६ कोस का उल्लेख है। ____३. उपर्युक्त ग्रामों-नगरों के उल्लेख प्राचीन जैनागमों से भौगोलिक दृष्टि से बराबर मेल.खाते हैं। १३. मुनिश्री सौभाग्बविजय जी रचित तीर्थमाला इस तीर्थमाला में विक्रम संवत १७५० में मुनिश्री मौभाग्ावजय जी ने लिखा है कि कोश छबीस बिहार थकी चित्त चेतो रे क्षत्रियकंड कहवाय। परवत तलहटीये बसे चित्त चेतो रे'मथरपुर छे जाय।।१३।। कोश दोय परवत 'गया। चित्तं चेतो रे माहणकंड कहे नाम। ऋषभवत ब्राह्मण तणो चित्त चेतो रे हुतो तिणे बमे वास ॥१४॥ हिवणा तिहां तटनी बहे चित चेतोरे गाम-ठाम नहीं काय जीरण श्री जिनराज ना चित्त चेतो रे बंद देहग दोय।।१५।। तिहां थी पर्वत ऊपरि चढ़या चित्त चेतोरे कोम जिमच्या गिरि कडखें एक देहरो चित्त चेतो रे वीर-बिंब सुखकार।।१६।। तिहां थी अत्रियकंर कहे चित्त चेतो रे कोश दोय भमि होय। देवल पूजी सहू बले चित्त चेतो रे पिण तिहां नवि जॉय काय १७।। गिरि फरसी ने आविया चित्त चेतो रे गाम-कोगर नाम। प्रथम परिवह बीर ने चित्त चेतोरेगातले लेखम ।।१।। तिहां भी चिहं कोशे भली बिन तो रे सकती करवाय। चन्ना बनगार ए नगर नो वित्तको रे बाज काही कारवाय

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