Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 177
________________ १४२ श्रमण संस्कृति की विशेषताएं नौवें तीर्थंकर सूविधिनाथ (पुष्पदंत) की च्यवन, जन्म, दीक्षा, भूमि काकंदी थी । दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ की च्यवन, जन्म, दीक्षा भूमि भद्दिलपुर (जिला हज़ारीबाग), बारहवें तीर्थंकर बासुपुज्य की च्यवन, जन्म, दीक्षा, भूमि चंपा थी । बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतस्वामी की जन्म दीक्षा, च्यवन भूमि राजगृही थी । अंतिम तीर्थंकर महावीर की च्यवन, जन्म, दीक्षा, भूमि कुंडपुर (क्षत्रियकुंड ) ( मुंगेर जिला अन्तर्गत ) थी। तीर्थंकर महावीर की केवलज्ञान भूमि ऋजुकूलानदी के तटवर्ती भिकाग्राम के बाहर थी इनकी प्रथम देशना (धर्मोपदेश) चतुर्विधसंघ, साधु साध्वी, श्रावक, श्राविका तीर्थ की स्थापना, इंद्रभूति आदि ग्यारह ब्राह्मणों को दीक्षा देकर गणधरों की स्थापना, ये सब कार्य पावापुरी में हुए । ग्यारह गणधर राजगृही में वैभारगिरि पर निर्वाण पाए थे। इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति ये तीनों गणधर सगे भाई थे इनका जन्म नालन्दा के निकट गुब्बरगांव (वर्तमान बड़गांव) में हुआ था। गणधर इन्द्रभूति ( गौतमस्वामी) को गुणाया (जिला नालन्दा) में केवलज्ञान हुआ था। ये सब घटनाएं भी मगध जनपद में हुई थी। मगध नरेश बिंबसार श्रेणिक भगवान महावीर का परमभक्त क्षायिक सम्यतत्वधारी अगली चौबीसी में पद्मनाभ नाम का होने वाला प्रथम तीर्थंकर, भगवान महावीर के प्रथम पट्टधर गणधर सुधर्मास्वामी इनके शिष्य जम्बूस्वामी ( दोनों केवली ) की जन्मभूमि भी मगध ही थी। भगवान महावीर के आगमों की प्रथम सम्मिलित वाचना केलिए श्रमण संगति स्थूलिभद्रकी अध्यक्षता में मगध की राजधानी पटना (पाटलिपुत्र ) में हई, चौबीसों तीर्थंकर तथा उनके श्रमणश्रमणियां मगध में विचरे । भगवान महावीर के उपरांत काल में भी श्रमण- श्रमणियों का इस प्रदेश में सतत विहार ( आना-जाना) होते रहने से यह प्रदेश विहार नाम से प्रसिद्ध हुआ । प्रभु महावीर अपनी दीक्षा के बयालीस वर्षों में से चौदह चौमासे राजगृही में किये। दीक्षाकाल के बयालीस वर्षों में से अधिक समय मगध में ही व्यतीत किये। जैनधर्म एवं मगध मगध को शिशुनाग वंशी बिंबसार श्रेणिक, अतातशत्रु (कोणिक) सिद्धार्थ नन्दीवर्धन, महानन्दी आदि राजवंशी और मौर्यवंशी सभी सम्राट व्रात्यक्षत्रिय थे। ये सब भगवान महावीर के अनुयायी तथा प्रवलपोषक थे। उनके अभयकुमार आदि शाकटायन, राक्षस और चाणिक्य महामंत्री भी

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