Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 179
________________ १४४ तीर्थकर भगवान महावीर के बंग के माथ चेदक का मंबन्ध 3 त थी।) इस विभाजन के आधार पर यहां का समाज भी तीन वर्गों में fक्त था। इस नगर की सुन्दरता का बखान वुद्धदेव अपने शिष्यों मे करते हा : र-बार यहां आने की बात कहते थे। यह वैशाली विदेह गणतंत्र की गजधानी विदेह भारत के तत्कालीन गणतंत्र गज्यों में से एक प्रधान शक्तिशाली राज्य था। इस गणतंत्र के महागजा चेटक लिच्छिवी जाति के क्षत्रिय थे। तीर्थंकर भगवान महावीर के वंश के साथ चेटक का संबंध तीर्थकर महावीर की माना गनी त्रिशला चटक की बहन थी। मबम प्राचीन जैनागम आवश्यक चणि में इसका उल्लेख मिलता है। विशाला (त्रिशला) के बड़े पत्र (महावीर के बड़े भाई) नन्दीवधन की पन्नी ज्येष्ठा चेटक की पत्री थी।। जैनागमों में सबसे प्राचीन एवं प्रथम आचागंग मत्र में भगवान महावीर की काष्ठ जीवनी मिलती है। उसमें एक स्थान पर महावीर की माता का एक नाम "विदेटिन्ना" भी आया है। अथांत महावीर की माता के नीन नामत्रिशला, विदेह-दिन्ना और प्रियकारिणी थे। भगवान का भी एक नाम विदेहदिन्न है। अर्थान- विदेहदिन्ना त्रिशला का पत्र-विदह दिन्न:- वर्धमान महावीर थे। इस प्रकार त्रिशला विदह की कन्या महागजा चेटक की बहन थी। कडपर के गजा मिद्धार्थ चेटक के बहनोई थे। नन्दीवधन एवं वर्धमान महावीर त्रिशला और सिद्धार्थ के पत्र थे और महागजा चेटक के भानेज थे। नन्दीवर्धन को चंटक की बंटी ज्येष्ठा व्याही थी। अनः नन्दीवधन महागजा चटक के जवाई (दामाद) भी थे। बौद्ध साहित्य में वैशाली और उसपर आधिपत्य रखने वाली लिच्छिवी जानि का बहन कछ वर्णन तो मिलता है किन्तु इस जनपद और समाज पर मर्वोपरि अधिकार रखने वाले किसी खास व्यक्ति का नाम नहीं मिलता। पर यह वर्णन तो मिलता है कि यह नगरी वज्जि (जि) मंघ गणतंत्र की गजधानी वैशाली थी। जैनग्रंथों के अनुसार वैशाली गणतंत्र के गजाओं द्वारा निवाचित महागजा चेटक था। वह भगवान महावीर का मामा था। भगवान महावीर में पहले चेटक तेईसवें नीर्थकर भगवान पाश्वनाथ की परंपग का अनुयायी था। पहले बुद्ध ने तीर्थकर पाश्वनाथ की परंपरा में दीक्षा ली थी और कठोर तपस्या की थी। पर यह इसमे वदाश्त नहीं हुई। इसला इम परंपग का त्याग कर

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