Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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क्षयकड
१२९ मेठानी भद्रा के पुत्र महाश्रेष्ठि धन्ना ने भी यहीं जन्म लिया था। जिसने ३२ स्त्रियां, सब परिवार, अखूट लक्ष्मी संपत बादि सब परिग्रह का त्याग कर भागवती दीक्षा ग्रहण की थी। यहां संघ केबिनमंदिर की यात्रा करने का वर्णन है। कवि ने १४ साधुओं के साथ क्षत्रियकुंड, बाहमणकंड और काकंदी का यात्रा करने का वर्णन किया है।
९. कवि मुनि विनयसागर कृत-यात्रासंघ .
विवरण वि. मं. १६७० में आगरा (उत्तरप्रदेश के लोढ़ा गोत्रीय बीसा ओसवाल कंवरपाल मोनपाल के यात्रामंघ के वर्णन में इस प्रकार कहा है कि
खत्रियकुंड सुहामबउ तिहां जनम्या अधमान रे। काकंदी, पग्विन्दयइ श्री सविधिनाय जिनभान रे।।७२।। अथात- क्षत्रियकंड जहां भगवान महावीर का जन्म हुआ, काकंदी जंहा भगवान सुविधिनाथ का जन्म हुआ था। संघ ने इन तीर्थों की भी यात्रा की थी।
पनश्च- इन्हीं कंवरपाल मोनपाल ने आगरा के मोतीकटड़ा के मन-बाजार में भव्य जैनदिर का निर्माण और प्रतिष्ठा कराई और पौषधशाला का निर्माण कगया था।
१०. मुनि श्री पुण्यसागर जी कृत यात्रा विवरण
वि.मं. १६०९ में तपागच्छीय मुनि पुण्यसागर जी ने इस प्रकार लिखा है
क्षत्रियकंड मठाम महावीर जिन रामति रमइए। ए चउवीसई नाम इ पूरबदिसि जाणी संघ आवई यात्रा धणाए
||१४३।। अर्थात- भगवान महावीर चौवीसवें तीर्थकर के जन्मस्थान क्षत्रियकंड में वहुत यात्रामंघ आते हैं।
११. मनि शीलविवय जी कृत तीर्थमाला
वि. सं. १७११-१२ में मुनिश्री शीलविजय जी ने पूर्वदेश की तीर्थमाला में यात्रा के वर्णन में लिखा है कि