Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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क्षत्रियकह ..
११. ५. ऐसी स्थिति में छापुर पहाड़ी-घाटी पर ही होना चाहिए। ऐसा अनुमान किया जा सकता है। ऐसा भी हम लिख आए हैं कि प्राचीनकाल में अपनी एवं अपने देश की सुरक्षा के लिए अधिकतर पहाड़ियों पर ही राजधानियों का निर्माण होता था और उन्हें घेरते हुए किलों का निर्माण भी पहाड़ियों पर ही किया जाता था। जैसे चित्तौड़गढ़ आदि। . .. .
अत्रियकुंड और नादिया (मांतिक) गांव
आवश्यक नियुक्ति में शातखंडवन से कुमारग्राम जाने केलिये जो नदीमार्ग है। उस नदी का नाम नहीं लिखा एवं यह भी नहीं पता चलता कि उसमें बारह मास पानी रहता था या नहीं। पर यह तो स्पष्ट है कि चौमासे में वर्षा के कारण सब नदियों में भरपर पानी रहता है। इसलिये यह नदी कार्तिक-मगसिर मास में पानी से अवश्य भरपर होगी। यह नदी पहाड़ी होने के कारण ऐसा बल खाती होगी कि थोड़ा अधिक चलने पर बल खाती हुई आगे चले जाने से कमारग्राम को स्थलमार्ग से भी जाया जा सकता था।
नदी के सामने गांव हो तो नदी को पार करना ही पड़ता है। यदि नदी के इसी तट पर गांव-नगर हो और नदी बल खाती आगे बढ़ जावे और बीच में दूसरा बल खा कर पीछे चली जाती हो तब नदी के किनारे-किनारे स्थलांग से चलकर सामने ग्राम पहुंच सकते हैं। यानि यदि ऐसा बल खायी नदी हो तो उसे लांघने की जरूरत नहीं पड़ती।
एक बात पहाड़ी नदियों की विशेष होती है- १. चानसमा और पीपर, २. लच्छाड़ और क्षत्रियकंड ३. खापा का बंगला और कालीकांकर, ४. वेतरबदनूर और एलचिपुर के बीच इसी प्रकार की नदियों में जलमार्ग और स्थलमार्म पड़ते हैं।
क्षत्रियकंड पहाड़ी-घाटी पर तो है ही। पहाड़ पर से समतल भूमि पर आने केलिये नदी किनारे का मार्ग अधिक सरल होता है। क्योंकि चौमासे में पहाड़ी नदियों का पानी बचानक वेग से तुफान बनकर बहता है। प्राचीनकाल में यहां नदी के पास एक ऐसा मान होगा कि जहां से गुजरते हुए मुसाफिरों को नदी के खड़े-पाट चलना पड़ता होगा। अपवा नवी को दोबारा लांघ कर समतल भूमि पर आने केलिये उतार-चढ़ाव कठिन मार्ग भी होते हैं। अतः वहां नदी से दूर ऐसा रास्ता भी होगा कि जहां चलते हुए बीच में नदी नही आवे। क्षत्रियकुंड से कुमारग्राम जाने केलिये इसी प्रकार के दो मार्ग होना संभव है।