Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 152
________________ क्षत्रियकड ११७ ४. इसके समीप ही ऋषड़ी नामक ग्राम है। ब्राह्मणकुंड के समीप होने से ऋषभदत्त ब्राह्मण के नाम पर इसका नाम सहज ही संभाव्य है। ५. भगवान महावीर दीक्षा लेने के बाद क्षत्रियकुंड के ज्ञातखंडवण उद्यान से कमारग्राम गये। यह स्थान यहां से पांच मील की दूरी पर है। यह आज भी कुमार नाम से प्रसिद्ध है । ६. इसके अनन्तर भगवान कोल्लाग सन्निवेश में गए थे। 66 आगम में चार कोल्लाग कहे हैं, इन नामसाम्य के कारण आज विद्वान निष्फल हो जाते हैं कि कुमारग्राम से विहार करके भगवान कौन से कोल्लाग में गये। उन्हें चाहिए कि आगे-पीछे का खूब गहरायी से विचार कर भौगोलिक दृष्टि से निर्णय लें। ज्ञातखडवन से कुमारग्राम और वहा से कोल्लाग - सन्निवेश, वहां से मोराक सन्निवेश, अस्थिग्राम आदि समग्र का विचार करने से मगध - जनपद में लच्छआड़ के समीप क्षत्रियकुंड के निकट जो कोल्लाग - सन्निवेश है, प्रभु ने दीक्षा लेने के बाद वहीं छठ तप का पारणा किया था। इसका निर्णय अवश्य कर पायेंगे। शेष तीन कोल्लाग भगवान महावीर के दीक्षा स्थल ज्ञातखंडवण से इतने दूर थे कि पारणे वाले दिन चंद घंटों में वहा पहुंच पाना एकदम असंभव था । अतः लच्छुआड़ के समीप भगवान कोल्लाग सन्निवेश में पारणा करके वहां से विहार करके स्वर्णखल नाम के ग्राम में पहुंचे। ७. स्वर्णखल, कोल्लाग से सात मील की दूरी पर सोनखार नामक ग्राम है। संभव है कि स्वर्णखल शब्द अपभ्रंश होकर सोनखार हो गया हो। इस प्रकार प्रभु भ्रमण करते थे। ८. प्रभु मोराक सन्निवेश पहुंचे और दूइज्जंत नामक तापस के आश्रम में आये ।" लच्छुआड़ से १४ मील की दूरी पर आज भी मोरा नामक ग्राम है। संभवत: मोराक का अपभ्रंश मोरा हो गया है। ९. जैनागमों से ज्ञात होता है कि क्षत्रियकुंड से चलकर भगवान राजगृही पहुंचे तो दक्षिण - वाचाला से उत्तर- वाचाला होकर जाना पड़ता था। आज के नक्शे ( मानचित्र) 'अनुसार भी राजगृही क्षत्रियकुंड से उक्त दिशा में ही पड़ता है । क्या ऐसा दशा में भी क्षत्रियकुंड वैशाली का मोहल्ला या उपनगर माना जा सकता है ? कदापि नहीं। क्योंकि क्षत्रियकुंड वैशाली से बिल्कुल अलग-थलग प्रभुता सम्पन्न राज्य था । वैशाली भगवान के मामा चेटक के गणतंत्र की राजधानी थी। मामा के घर में भगवान महावीर के जन्म होने का कोई संकेत शास्त्र में अथवा इतिहास में नहीं मिलता

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