Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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यात्री-यात्रीसध अहमदाबाद से प्रकाशित कराई थी। खेद है कि इसकी ओर विद्वानों ने ध्यान ही नहीं दिया और न ही प्रकाशक संस्था ने इस के व्यापक प्रचार-प्रसार की जरूरत समझी। परिणाम यह हुआ कि पाश्चिमात्य और उनका अंधानुकरण करने वाले आधुनिक भारतीय अन्वेशकों के प्रभाव में ही सब बहते चले गए। अतः यह प्रांत मान्यता सर्वव्यापक रूप धारण करती गई। ___मुनि श्री दर्शनविजया जी (त्रिपुटी) ने अपने मुनियों के साथ कलकत्ता में चतुर्मास करने केबाद विहार करके विक्रम संवत् १९८७ में इस प्रदेश में स्वयं पैदल भ्रमण कर प्रत्यक्ष वास्तविक तथ्यों का उद्घाटन किया था। वर्तमान में एक.दो पस्तकें इसी विषय के समर्थन में विहार प्रदेश के जैनेतर कालरों ने भी हिन्दी में लिखकर प्रकाशित की है।
८. यात्री (PILGRIMS) यात्रियों द्वारा लिखित तीर्थमालाएं आदि
इस क्षत्रियकुंड के आसपास कई नगरों गावों में प्राचीनकाल से ही जैनमंदिर थे। जिनका उल्लेख तीर्थमालाओं में हुआ है। महादेव-समरिया में (लच्छआड़ को पर्व दिशा में) पांच जैनमंदिर थे, जिन की प्रतिमाएं वहां के लोगों ने तालाब में डाल दी हैं। यद्यपि आसपास के गांवों में काफी जैन अवशेष नष्ट कर दिए गए हैं तो भी खोज करने से आज भी बहत अवशेष मिल सकते हैं।
वर्तमान क्षत्रियकंड बहत प्राचीन स्थान है। कंडघाट की नदी के किनारों पर दो प्राचीन जैनमंदिर हैं। एवं पहाड़ी पार करने पर जन्मस्थान का मंदिर है जहां सिद्धार्थ राजा का महल था। वर्तमान जन्मस्थान से दो मील दूर लोधापानी में जंगल-झाड़ियों के बीच इस महल के खंडहर विद्यमान हैं। यहां के मंदिरों की इंटें १५०० वर्ष पुरानी हैं। प्राचीनकाल से जैन यात्रीसंघ यहां यात्रा केलिये आते रहे हैं। यद्यपि प्राचीन इतिहास के नष्ट हो जाने से और जो हैं उनकी नकलें करके प्रचारित न होने से अधिक लेख प्राप्य नहीं हैं। फिर भी यहां के यात्रीसंघों के यात्रा वर्णन मिलते हैं। यह प्राचीन अविच्छिन्न परम्परा को प्रभावित करते हैं।
१. युगप्रधान आचार्य गुर्वावली यह एक प्राचीन और प्रमाणिक ग्रंथ है। जिसमें वि. सं. की १४ वीं शताब्दी तक की घटनायें देनदिनी की भांति समसामयिक लिखी हुई मिलती हैं। उसमें