Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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क्षत्रियकंड
में जाते स्वर्णबालुका नदी के किनारे बचे हुए आधे वस्त्र का पतन, स्वर्णबालुका एवं रौप्यबालुका नदियों का उल्लंघन उत्तरवाचाला के वनखंड में चंडकोशक सर्प का उपसर्ग और उसे प्रतिबोध, उत्तरवाचाला में प्रदेसी राजा द्वारा किया हुआ भगवान का भावभीना सत्कार, गंगानदी के किनारे पर सूक्ष्म-मिट्टी में विहार करते हुए प्रभु के चरणबिंबित पद पंक्ति में चक्रध्वज, अंकुश आदि शुभ लक्षणों को देख कर पुष्पक नामक सामुद्रिक का भगवान के निकट आना और इन्द्र का पुष्पक की शंकाओं का समाधान करना। सुरभिपुर से श्वेतांबी जाने वाले पांच रथवाले राजाओं द्वारा प्रभु को वन्दना, गंगा पार करते हुए नौका में सुवंष्ट्र का उपसर्ग, राजगृही के नालंदा पाड़े में दूसरा चौमासा । चौमासे बाद कोल्लग सन्निवेश में आकर चौमासी तप का पारणा करना इत्यादि (कल्पमत्र)
हम लिख आये हैं कि पहले चर्तुमास के बाद जब भगवान सुरभिपुर जा रहे थे तब गंगा के तट पर उनके पर्दाचन्हों को देखकर पुष्पक सामुद्रिक प्रभ के निकट पहुंचा था और इन्द्र ने उसकी शंका का समाधान किया था । ( मात्र इतना कहकर शास्त्र मौन है) ' विचारणीय है कि यह घटना तब घटी है जब भगवान सुरभिपुर से श्वेतांबी जा रहे थे। अतः भगवान यहां से गंगा पार कर श्वेताची गये थे क्योंकि सुरभिपुर गंगा के दक्षिण तट पर था यहां से श्वेतांबी उत्तर तट पर गंगा पार करके ही प्रभु गये थे यह मानना पड़ेगा और वहां से लौटते हुए दोबारा गंगा पार करके सुरभिपुर राजगृही आकर चौमामा किया था। यह बात निश्चय है । क्योंकि कुमारग्राम, मोराकसन्निवेश अस्थिग्राम, वाचाला, मर्गभपर राजगृही, नालंदा, चंपा आदि ये सब नगर ग्राम आज भी गंगा के दक्षिण में हैं और भगवान ने क्षत्रियकुंड के बाहर ज्ञातखंडवन में दीक्षा लेकर उपयंत्रत नगर्ग- प्रामां से होते हुए श्वेतांबी गये थे। अतः कंडपर (क्षत्रियकुंड - ब्राह्मणकंड) भी गंगा के दक्षिण में ही था । यह स्वतः सिद्ध हो जाता है। गंगा के उत्तर में नहीं था। यह भी सच्च है।
(१) भगवान १६ वें चौमासे के बाद चंपा (अंगजनपद) से बिहार करेके वीतभयपत्तन (सिन्धु- सौवीर जनपद) में पधारे। वहां के राजा उदायन को दीक्षा दे कर वापिस लौट कर १७ वां चौमामा वाणिज्यग्राम (विदेह जनपद ) मं किया। इस बिहार में हज़ारों मील आना जाना पड़ा।
(२) भगवान २७ वां चीमामा मिथिला (विदेह जनपद) में करके वहां म हस्तिनापुर (कुरू जनपद में पधारे और लौट कर ०८ वां चीमामा बाणिज्यग्राम (विदेह जनपद) में किया। इस बिहार में प्रभु को हज़ारों मील जाना माना पड़ा।