Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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क्षत्रियकुंड
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"इस चाह की मुझे चाह नहीं, इस चाह को चाह में अल दो।"
यहां चाह शब्द का चार बार प्रयोग हुआ है। चारो शब्दों का अर्थ अलग अलग है। १. इस (चाह) चाय को, २. (चाह) कुंए में डाल दो ३. इस (चाह) प्यार स्नेह की, मुझे ४. (चाह) इच्छा नहीं है। (यह वाक्य उर्दू भाषा के है)।
यहां यदि कोई व्यक्ति अपनी विशेष बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करने केलिये विदेह- वेसालीय के अनुसार बिना आगा-पीछा, प्रसंग-संदर्भ के सोचे कि चारों चाह शब्दों का एक अर्थ लगाकर सफल होना चाहे तो सर्वथा असंगत और असंभव है। समझदार लोग उसे एकदम अज्ञानी ही मानेंगे। यही बात विदेह आदि शब्दों के अर्थ लगाने में हुई है। शब्द प्रायः अनेकार्थवाची होते हैं। अतः किसी भी सत्य को समझने के लिये आगा-पीछा सोचकर संदर्भ के अनुकूल अर्थ को स्वीकार करने से ही सच्ची सफलता पाना संभव और बुद्धिमत्ता है (७) राज्य संबन्ध में भी सूचित करते हैं कि क्षत्रियकुंड नगर एक महत्वपूर्ण स्वतंत्र राज्य की राजधानी थी । विदेह वैशाली में तो भगवान महावीर की ननिहाल थी। वहां उन्होंने वैशाली और वाणिज्यग्राम में कुल मिलाकर बारह चौमासे किये थे। चार चौमासे मिथिला में किये थे। कुल मिलाकर विदेह जनपद में भगवान ने १६ चौमासे किये थे। इन चौमासों के अतिरिक्त विदेह जनपद में श्वेतांबी, वैशाली, श्रावस्ती, मिथिला, वाणिज्यग्राम कोसांबी आदि प्रसिद्ध नगरों में भगवान १७ बार पधारे थे । १४ चौमासे राजगृही (मगध जनपद) में एवं इसी जनपद में अन्य अनेक बार पधारे भी थे।
(८) इस से यह स्पष्ट है कि भगवान का अधिकतर विहार समय- अंग, मगध और विदेह जनपदों में रहा। यही कारण है कि इन क्षेत्रों में भगवान महावीर के प्रवचनों का आशातीत प्रभाव पड़ा। इसलिये उनके धर्म को यहां की जनता ने बड़ी श्रद्धा से अपनाया। यदि इस कारण से भगवान महावीर का नाम वैशालिक अथवा वैदेही भी प्रसिद्ध हो गया हो तो कोई आश्चर्य नहीं है। इन नामों के कारण भगवान महावीर का जन्मस्थान विदेह या वैशाली मान लेना कोई युक्तिसंगत नहीं है। कार्यक्षेत्र के कारण उस व्यक्ति को उस क्षेत्र के नाम से भी संबंधित किया जाता है। जैसे (१) मोहनलाल कर्मचंद गांधी (महात्मा गांधी) का जन्म पोरबन्दर (सौराष्ट्र) में हुआ, पर उनका कार्यक्षेत्र साबरमती ( अहमदाबाद) होने से साबरमती के बाबा कहलाये। (२) विनोबा भावे का जन्म महाराष्ट्र के किसी गांव में हुआ, परन्तु उनका आश्रम वर्धा में होने से वर्धा के सन्त कहलाये । ३. जैनाचार्य विजयबल्लभ सूरि का जन्म बड़ोदा (गुजरात) में हुआ, परन्तु उनका कार्यक्षेत्र प्रायः पंजाब होने से पंजाबी कहलाये। (४) आचार्य