Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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बनिया-चक्रामदाम कोला १. महागजाधिराज चन्द्रगुप्त की पत्नी महाराज श्री गोविन्दगान की माता महादेवी श्री धवस्वामिनीं। अर्थात् महागज श्री चन्द्रगान की पन्नी. महागज श्री गोविन्दगप्त की माता महादेवी श्री ध्रवस्वामिनी। २. यवगज भट्टारक पादीय बलाधिकरण। अर्थात माननीय श्री यवगज की मैना का कार्यालय। ३. थी परमभट्टारक पादीय कमागमात्याधिकरण। अथांत गजा की मेना में लीन कमार के मन्त्री का कार्यालय। ४. दण्डपाशाधिकरण। अर्थात दण्डाधिकारी का कार्यालय। ५. तीरभक्त्यपरिकाधिकरण। अर्थात् निगहत (तिरक्ति) के गज्यपाल का कार्यालय। ६. तीरभक्तो विना ग्निस्थापिकाधिकरण। अर्थात तिग्हत (तीरभक्ति) के समाचार-संशोधक का कार्यालय। ७. वैशाल्याधिष्ठानाधिकरण। अर्थात् वैशाली नगर के राज्यशामन का कार्यालय।
जनति के अनमार यहां बावन पोखरें (पष्कणियां) थीं। किन्त कनिंघम बावन में मे केवल १६ का पता पा सके थे। वैशाली के राजाओं के राज्याभिषेक कॅलए इन पोखगे का जल काम में लिया जाना होगा।
बनियाऔर चक्रामदास बसाढ़गढ़ के उत्तर-पश्चिम में लगभग एक मील की दरी पर बनियागांव है इसका दक्षिणी भाग चक्रामदास है। एच. बी. डब्ल्य गैरिक ने यहां से प्राप्त दो प्रस्तर मर्तियों का उल्लेख किया है जो माप मे (१) १२ फट २ इंच १४ फट २ इंच और (२) एक फट १० इंच. १ फुट ३ इच थी। (ये प्रतिमाएं जैन नहीं थीं) यहां सिक्के, मिट्टी के पात्र आदि भी प्राप्त हुए हैं। यहां से मिली वस्तओ मे मिट्टी का बना दीवट भी है। गले के आभषण मिले हैं। गढ़ और चक्रामदाम के बीच लगभग आधा मील लम्बा पोसर है जो घडदौड़ के नाम से प्रसिद्ध है चक्रामदास के दक्षिण-पश्चिम में कुछ ऊंचे स्थल हैं जिनपर प्राचीन खंडहर है।
कोलुआ गढ़ के उत्तर-पश्चिम में लगभग एक मील की दूरी पर कोलुआ नामक स्थान में अशोक का स्तम्भ (बरबरा की दक्षिण पर्व में एक मील की दरी पर स्तूप), मर्कट हृद (गमकंड) है। वैशाली के संबंध में हघङमांग ने जो लिखा है उससे इन स्थानों का ठीक-ठीक मेल बैठता है। इसमें वैशाली के गजप्रासाद की परिधि ४-५ ली (५ ली = १ मील) लिखी है। वर्तमान गढ़ की पर्गिध ५ हजार