Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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ऐतिहासिक सेना थी, उस ने युद्ध में इन्द्र को भी हराया था। (ये सब जैनागमों-शास्त्रों के प्रमाणों के साथ साहित्यिक प्रकरण में लिख आये हैं। )
(२) ऐसे समृद्धिशाली स्वतंत्र राजा को एक सामान्य मुहल्ले का उमराव वह भी. मात्र ज्ञातवंशियों का कैसे माना या कहा जा सकता है!
(३) भगवान महावीर के गर्भ में आने से लेकर दीक्षा के प्रसंगों में शास्त्रों में जो उल्लेख आये हैं, उनमें किसी भी प्रसंग के वैशाली के साथ कोई भी उल्लेख नहीं है । यदि क्षत्रियकुंड वैशाली का एक मोहल्ला होता तो किसी एक प्रसंग में भी वैशाली का उल्लेख अवश्य होता । पर ऐसा नहीं हुआ है। विदेह और वैशाली का कहीं भी उल्लेख नहीं होने से यह बात स्वतः सिद्ध हो जाती है कि वैशाली अथवा उसका कोई मोहल्ला या उसके आस-पास का कोई ग्राम भगवान महावीर का जन्मस्थान नहीं था।
(४) शास्त्रों में भगवान महावीर के च्यवन ( गर्भावतरण) जन्म, दीक्षा कल्याणक जिस ढंग से मनाने का उल्लेख है, उस ढंग से एक मोहल्ले में मनाया जाना एक दम असंभव था। कदापि नहीं मनाये जा सकते थे।
(५) मात्र विदेहे, विदेहदिन्न, विदेह - दिन्ना, आदि एवं वेसालिए के सूत्र पाठों से इनका अर्थ क्षेत्र मान लेना सर्वथा भ्रांत है। बिना आग-पीछा सोचे प्रसंग - संदर्भ का बिना विचार किये मात्र कल्पना और अनुमान लगाने का कारण यही है कि इन गुणवाचक विशेषणों को क्षेत्र वाचक मानलेना यह कोई समझदारी नहीं है। यदि विदेह आदि शब्दों का संबंध भगवान महावीर के जन्मस्थान से है तो ये विशेषण उनके माता-पिता, भाई-बहन, पुत्री - दोहितृ तथा अन्य परिवार जनों के साथ क्यों प्रयुक्त नहीं किया गया? केवल भगवान के साथ ही क्यों प्रयुक्त है ? इस से ये शब्द क्षेत्रवाचक न होकर केवल गुणवाचक हैं। रानी त्रिशला विदेह की राजकन्या थी और भगवान महावीर वैदेही राजकन्या के पुत्र थे । इसीलिये उनके नामों के साथ गुणरूप दोनों विशेषणों का प्रयोग हुआ है। इस सारे प्रकरण का हम पूरे विस्तार के साथ पहले विवेचन कर आये हैं। अतः इन शब्दों का विदेह जनपद अथवा वैशाली में भगवान महावीर का जन्मस्थान मान लेना कोई समझदारी नहीं है।
(६) हम यहां एक घटना का उल्लेख करना आवश्यक समझते हैं
एकदा एक व्यक्ति अपने परमस्नेही मित्र को बड़े स्नेहपूर्ण भावोल्लास से चाय पिलाने के लिये प्याला भर लाया। परन्तु मित्र को चाय पीना पसंद नहीं था । मित्र कवि था। उसने मुस्कराते हुए हाथ जोड़ कर विनम्र भाव से कहा- भाई
साहब