Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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२. भूतत्त्व विद्या
पाश्चिमात्य और भारतीय आधुनिक विद्वानों का जो दावा भगवान महावीर की जन्मभूमि वैशाली में कुंडपुर की मान्यता का है वह समाप्त हो जाता है । क्योंकि ( १ ) इन दोनों के निकट कोई पहाड़ नहीं है। (२) न ही वैशाली के निकट ब्राह्मणकुंडग्राम, क्षत्रियकुंडग्राम, कुमारग्राम, कोल्लाग सन्निवेश, मोराक-सन्निवेश, अस्थिग्राम, स्वर्णखिल्ल, लोहागल आदि नगर - ग्राम हैं। (३) ये लोग वसुकुंड, वसाढ़ को क्षत्रियकुंड और कोलहा को कोल्लाग सन्निवेश मानते हैं और इन्हें वैशाली के मुहल्ले कहते हैं। यह सब गलत मान्यताएं हैं। मात्र अटकलों पर अधारित हैं । ( ४ ) इस साहित्यिक विश्लेषण से यही मान्यता सच्च सिद्ध होती है कि मगध जनपद में मुंगेर जिले में जमुई सर्बार्डाविजन में लच्छुआड़ के निकट जो क्षत्रियकुंडनगर था वही वास्तव में भगवान महावीर का जन्मस्थान था । यह बात निर्विवाद और नि:संदेह है।
२. भूतत्त्व विद्या (GEALOGICAL)
पावापुरी भगवान महावीर की निर्वाणम और वैशाली की दूरी पावापुरी और लच्छु आड़ की दूरी से बहुत अधिक है। आगमों में वर्णन है कि पावापुरी में भगवान महावीर के निर्वाण के समाचार पाकर क्षत्रियकुंड के राजा नन्दीवर्धन ( भगवान महावीर का बडा भाई) भगवान महावीर के पार्थिव शरीर को अग्निसंस्कार के समय पावापुरी में पहुंच गये। लच्छुआड़ से पावापुरी घड़ सवारी से कुछ ही घंटों में पहुंचा जा सकता है। क्योंकि दोनों स्थानों में लगभग ३६ मील का अन्तर है। पावापुरी और वैशाली में इतनी अधिक दूरी है कि वहा एक दिन में नहीं पहुंचा जा सकता। आधुनिक विद्वान लच्छुआड़ के नजदीक माहना, कुंडघाट, कुमार, कोल्लाग, अस्थावन, जमुई, लोहागल, मोराक आदि ग्रामों नगरों को सक्क - सक्कयानी, दिक्करानी, किन्दुआनी, चक्कणाणी पहाडियों को ढूंढने का कष्ट क्यों नहीं करते। जिनके नाम भगवान महावीर की जीवन घटनाओं की याद दिलाते हैं। इसी क्षेत्र में क्रमशः ब्राह्मणकुंडग्राम, क्षत्रियकुंडग्राम, कुमार, कोल्लाग, अस्थिग्राम, जम्भीयग्राम, लोहागल, और मोराक कुछ साधारण विकसित नामों से वर्त्तमान लच्छुआड़ कोठी मे बीस मील के घेरे में अवस्थित हैं। जन्मस्थान के निकट पुराना खंडहर रूप किला भी है जो कि राजा सिद्धार्थ का है और पहाड़ी की गोदी में बना हुआ
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है।
जो नालंदा के निकट कुंडलपुर को दिगम्बर संप्रदाय दूसरा जन्मस्थान है वह राजगृह के उत्तर में छह मील दूर स्थित है और वह भी पहाड़ों से