Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 125
________________ राहुल साकृत्यायन एवं अन्य बौद्ध-राहल साकृत्यायन एवं अन्य विद्वान पालिग्रंथों के कोटिग्राम एवं नादिकाग्राम जिन्हें जैकोबी का अणुकरण करते हुए राहुल सांकृत्यायन, भरतसिंह उपाध्याय आदि ने मातृ या णायकल के क्षत्रियों के ग्राम माने हैं,ये बुद्धदेव के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। पर यहां जिनशासन का कोई संकेत नहीं मिलता। नादिका को भगवान महावीर के क्षत्रियकुल का ग्राम मानना सर्वथा बसंगत है। क्योंकि इस कल में तीर्थंकरों की परम्परागत प्रतिष्ठिा थी। भगवान के पिता सिद्धार्थ तेइसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के अनुयायी थे, और स्वयं भगवान महावीर जैसे तीर्थकर इस कुल में उत्पन्न हुए थे। जो बुद्धदेव के समकालीन थे। ऐसा महत्वपूर्ण संदर्भ नादिका के विवरण में अछूता छूट जाना विश्वसनीय प्रतीत नहीं होता। क्योंकि बौद्धसत्रों में अन्यत्र बुद्धदेव के उपदेशों के संदर्भ में भिन्न मतावलम्बियों का भी उल्लेख पाया जाता है। पालिग्रंथों में नादिकाग्राम के दो प्रचलित नाम मिलते हैं। १. नादिका एवं २.जातिका। भरतसिंह उपाध्याय का मत है कि यह जांतिक लोगों का गांव था जो वज्जिसंघ के ही एक अंग थे। शांतिक शब्द की कई व्याख्याएं की गयी हैं। आधुनिक विद्वानों ने शांतिक का संबंध भगवान महावीर के ज्ञात नामक क्षत्रियकुल से स्थापित किया है और वैशाली में इम कुल के वंशधरों को भी ढंढ निकाला है। काशीप्रसाद जयसवाल और राहुल सांकृत्यायन की यह धारणा कि मुजफ्फरपुर के जेथरिया नामक मिहार ब्राह्मणों की एक शाखा भगवान महावीर के नाम या ज्ञात कल से मंधित थी। यह उनकी अटकल मात्र है। ज्ञात और जैथरिया में ध्वनिसाम्य देखकर यह धारणा बना ली गई है। वमदेवशरण ने भी बिना जांच किये इस बात को मान लिया है। स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने यथेष्ठ प्रमाण से इम भांत मान्यता को निग्मन किया है। उन्होंने जेाग्या को मूलस्थान का वाचक माना है। कुल का वाचक नहीं। जेथर छपग जिले में है और उस मूल के ब्राह्मण जेथग्यिा छपग और मजफ्फरपर दोनों जिलों में पाये जाते हैं। 10 मूलस्थान छपरा में होने की बातें जात होते ही राहल जी ने अपनी धारणा में यह संशोधन कर लिया कि जातक क्षत्रियों का कल मुजफ्फरपुर में नहीं छपरा में था। गहल जी के इस मशोधन मे वैशाली में भगवान महावीर की जन्म म होने की मान्यता म्वनः डिन हो जाती है। यह दमग वान है कि जातकों का मंबन्ध होने का आग्रह उन्होंने नहीं छोड़ा। पालि में जानिक शब्द का अथं जाति या नात होना है। प्रांति सेठे का अर्थ है-जाति श्रेष्ठ। भगवान महावीर के कल का नाम नाय (पालि-नान) का मंबन्ध नादिकाग्राम के स्थापित करने का मलकारण यह है कि इसमें भगवान की जन्म म वैशाली को सिद्ध

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