Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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भत्रियकंड
(३) भगवान ३० वां चौमासा वाणिज्यग्राम (विदेह जनपद) में करके वहां से काम्पिल्य (पांचाल जनपद) में पधारे वहां से लौटकर ३१. वां चौमासा इन्होंने वैशाली (विदेह जनपद) में किया। इस विहार में भी प्रभु को हजारों मील जाना आना पड़ा। इस प्रकार भगवान ने ४२ वर्ष की दीक्षा पर्याय में सैकड़ों छोटे बड़े विहार किये। इन विहारमार्गों में कितने कितने (बेशुमार) नदी-नाले आये होंगे
और उन्हें कितनी बार पार करना पड़ा होगा। इस बात को भूगोल का विद्यार्थी भलीभांति जानता है। लेकिन शास्त्र इसके लिए एकदम मौन है। इससे यह मान लेना कि इन विहारों में भगवान ने कोई नदी-नाला पार नहीं किया क्योंकि इसका शास्त्र में कोई उल्लेख नहीं है इसलिये ये सब स्थान गंगा की उत्तरदिशा में वैशाली (विदेह जनपद) की परिधि में ही होने चाहिये अन्यत्र नहीं। यह कितनी बेसमझी (अज्ञानता) की बात है। इससे यह भी स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि शास्त्र में भगवान के विहार में आने वाले नदी नालों को पार करते समय यदि कोई उल्लेखनीय घटना हुई हो तो उसी का उल्लेख है अन्यथा नहीं।
अतः सरभिपुर से श्वेतांबी जाने से पहले गंगा नदी के दक्षिणतट पर पुष्पक सामुद्रिक का प्रभु को मिलने की घटना का तो शास्त्र में उल्लेख है न्योंकि यह एक विशेष घटना थी। पर नदी पार करना कोई महत्वपूर्ण घटना न होने में शास्त्र में इसका उल्लेख न होना स्वाभाविक है, जैसे अन्य नदी-नालों का कोई विशेष घटना न होने से उल्लेख नहीं किया गया। पर गंगा नदी के दक्षिण तट पर श्वेतांबी जाने से पहले विहार करके पुष्पक घटना के तुरंत बाद भगवान का श्वेतांबी पहुंचना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि इस समय गंगानदी पार करके भगवान नदी के उत्तरतट पर पहुंचकर श्वेतांबी पधारे और वहां से लौटकर राजगृही में चौमासा किया।
(४) भगवान ने चौदह चौमासे राजगृही में किये, बारह चौमामे वाणिज्यग्राम और वैशाली में किये। यहां जाने-आने में गंगानदी और गंडकी नदी को कितनी बार पार करना पड़ा होगा? पाठक इमे स्वयं ही भलीभांति जान सकते हैं। आगम में तो मात्र इन नदियों के एक-दो बार ही पार करने का उल्लेख है। अन्य समय में नदी पार करने को नकाग नहीं जा मकता। मच्च बात तो यह है कि भगवान महावीर मोगक, अस्थिग्राम के चौमामे के बाद गंगानदी पार करके श्वेतांबी गये थे और वहां से लौटते हुए दमरी बार गंगानदी पार करके राजगृही पधारे। इस बात की पुष्टि पप्पक माद्रिक के प्रमंग में होती है।
क्षत्रियकुंड और वैशाली के मोहल्ले,