Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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अत्रियकंड विषय में निम्न-कक्षाओं की पाठयपुस्तको से लेकर उच्चतम कमानों की पाठ्यपम्तकों में भी वही भ्रामक बातें लिखी गयी हैं। इस संबंध में मज-इतिहासकारों को जैनों के धार्मिक इतिहास ग्रंथों और उनकी प्रचलित परम्पगगत मान्यताओं के अनुसार- निष्पक्ष शोधपूर्ण दृष्टि से देखना गितांत आवश्यक था। विना पूर्ण अनुमंधानों के प्रामक बातें लिखना इतिहासकारों की अदरर्दाशंता को ही प्रामाणित सिद्ध करता है। यहां पर यह बात सर्वका अखंडनीय है कि वैशाली, वसाढ़, वामुकंड, कोलुआ, कोटिग्राम, शांतिक आदि को भगवान महावीर की जन्म म कभी नहीं कह सकते। श्री नरेशचंद्र मिय 'भंजन' जो मगध जनपद के जमुई में मनन क्षेत्र (अत्रियकुंड के निकट) के निवामी हैं- उनका कथन है कि अयोध्या, जनकपुरी, दंडकपंचवटी, मधुरा, वृन्दावन, मिथिला, काशी आदि हजारों वर्षों में एक ही नाम से विख्यात हैं तो क्या कारण है कि क्षत्रियकंड, कोल्लाग, कुमारग्राम आदि के नाम लगभग पच्चीम मौ वर्षों में ही वामकंड, वसाढ़, कोलआ हो गये? इस का कारण उपस्थित करने का प्रयत्न करने में पर्व मेरा कथन है कि यदि क्षत्रियकर और उसके ममीप के ग्राम, नगर जैनियों के प्राचीन धार्मिक ग्रंथ आचारांग, कल्पसूत्र आदि में उल्लिखित ग्राम-नगर जिनका संबंध.भगवान महावीर केविहारक्रम में इम क्षत्रियकंड नगर के आम-पाम प्राचीन नामों से अथवा कालदोष के कारण माधारण अपभ्रंश के माथ मिल जावें तो भगवान महावीर की जन्मभूमि मगध जनपद के लच्छुआड़ के समीप मानने में आपत्ति क्या और क्यों है?
वह कहते हैं कि भगवान महावीर का जन्म मगध जनपद के क्षत्रियकंड में हुआ था जो गंगानदी के दक्षिण में था। इस स्थान को आज भी शत-प्रतिशत इस क्षेत्र की अवाल-वृद्ध स्थानीय जनता'जन्मस्थान (जन्मथान) के नाम से जानती पहचानती है। किन्त इस के वास्तविक अर्थ से ढाई हजार वर्षों के लम्बे अंतराल के कारण मब अनभिज्ञ हैं। भगवान महावीर का यहां एक प्राचीन मंदिर भी है। यह स्थान मुंगेर जिले के अंतर्गत जमुई सबडिविजन के लच्छुआड़ नाम के गांव के दक्षिण पर्वत श्रेणी के दक्षिण पार्श्व में अवस्थित है।
बाई हजार वर्ष पहले तक्षशिला, कौशाम्बी, श्रावस्ती, श्वेताविका भोगनगर, वैशाली, राजगृही, नालन्दा, चम्पा, कोटिवर्ष, आदि अनेक नगर जो जैनधर्म के केन्द्रस्थान और समृद्ध थे आज वहां यह समृद्धि नहीं है वह वैभव भी नहीं है। उन्हें कोई जानता भी नहीं है। वहां मात्र उजाड़ वीरान टीले, ध्वंसचिन्ह, खंडहर अथवा उनके अवशेष रूप में बसे हए छोटे-छोटे मावनजर आते हैं।