Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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क्षत्रियकड
पं. कल्याणविजय का मत है कि पन्यास जी भी आचार्य श्री की ही पुष्टि करते हैं। देखिये इन्हीं की पुस्तक श्रमण भगवान महावीर
आप भगवान महावीर का जन्मस्थान 'वैशाली' को सिद्ध करने केलिये एक और तर्क उपस्थित करते हैं। आप कहते हैं कि "भगवान महावीर का जन्म लच्छआड़ के निकट क्षत्रियकंड में हुआ इस परम्परा को मैं सच्चा नहीं मानता। इस केलिये नीचे लिखे कई कारण है।"
(१) सत्र में भगवान महावीर केलिये विदेहे विदेहदिन्ने विदेहबच्चे विदेहसमाले" आदि पाठ है और वेसालिये नाम भी मिलता है। इस से मानना पड़ता है कि भगवान का जन्मस्थान विदेह में वैशाली का एक मुहल्ला रूप है।
(२) क्षत्रियकंड जो एक बड़ा नगर था, भगवान महावीर ने दीक्षा लेने के बाद वहां एक भी चौमासा नहीं किया। और न ही वहां पधारे
(३) भगवान महावीर ने दीक्षा लेने के बाद क्षत्रियकंड मे विहार कर कमारग्राम, कोल्लाग सन्निवेश, मोराक सन्निवेश आदि ग्राम नगरों में विहार कर अम्थिग्राम में (पहला) चौमासा किया। दसरे वर्ष मोगक, वाचाला, सरभिपर, श्वेतांबी जाकर वहां से राजगही वापिस आकर चौमामा किया। इस लेखानुसार भगवान (पहले) चौमासे बाद श्वेतांबी जाते हैं। (जो विदेह जनपद मे है।) और गंगानदी पार करके राजगही (मगध जनपद में) पधारते हैं। इसमे मिद्ध होता है कि लच्छआड वाला क्षत्रियकंड असली नहीं है। क्योंकि उसके पास श्वेताम्बी नगरी नहीं है और वहां से गजगही जाते हए उन्हें गगानदी पार करनी पडी। यदि क्षत्रियकंड लच्छ आड़ के निकट होता तो नदी पार नही करनी पड़ती। इसलिये मानना पडता है कि क्षत्रियकड गंगा के उत्तर बिहार में था। (४) वैशाली के पश्चिम में गंडकी नदी थी। उसके पश्चिम ब्राह्मणकड. क्षत्रियकंड, वाणिज्यग्राम, कमारग्राम: कोल्लाग मन्निवेश आदि महल्ले थे। ब्राहमणकंड-क्षत्रियकंड पर्व-पश्चिम में थे। इन दोनो के बीच में वहशालचत्य था। पन्यास कल्याणविजय जी की तर्कणाओं पर
विचार (इस पहली तर्कणा का समाधान हम आ. विजयेन्द्र मार के प्रकरण में कर आये हैं।