Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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क्षत्रियकुंड
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कि वह अपनी इंद्राणी के कानों के कुंडल महारानी त्रिशला को पहनाने के लिये दे । इन्द्र के इन्कार करने पर सिद्धार्थ ने इन्द्र को युद्ध में हराकर इन्द्राणी के कुंडल उतार कर त्रिशला को पहनाये और उसका दोहद पूरा किया। * तत्पश्चात् इन्द्र अपने साथ लाये हुए इन्द्राणी और सब देवों देवियों के साथ अपने देवलोक में वापिस चला गया।
जिस पर्वत पर यह घटना हुई उस पर्वत का आज भी नाम सक्क-सक्कियानी प्रसिद्ध है। यह शब्द अर्धमागधी भाषा का है। इसका संस्कृत रूपांतर शुक्र-शक्राणी होता है। शुक्र-इन्द्र और शक्राणी- इन्द्राणी को कहते हैं। जब त्रिशला को सिद्धार्थ द्वारा इंद्राणी के कुंडल पहनाने का दोहद हुआ था तब सौधर्मेन्द्र ने अवधिज्ञान द्वारा जानकर यह सारी रचना रची और राजा सिद्धार्थ के साथ युद्ध किया एवं वह जानबूझ कर पराजय मान कर वहां से पलायन कर गया। तब सिद्धार्थ ने इन्द्राणी के कुंडल उतारकर त्रिशला को पहनाये और उस का दोहद पूरा किया।
भगवान महावीर का जन्म
ईसापूर्व ५९९ (विक्रम पूर्व ५४२) चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की पूर्व - रात्री में चंद्र की हस्तोत्तरा (उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र ) के साथ युति होने पर क्षत्रियकुंडपुरनगर में भगवान वर्धमान महावीर का जन्म हुआ ।
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भगवान महावीर का जन्मोत्सव छप्पनदिक्कुमारियों का आना
भगवान महावीर का जन्मोत्सव मनाने केलिए छप्पन दिक्कुमारियों के आसन चलायमान हुए। अवधिज्ञान से भगवान का जन्म हुआ जानकर रात्रि को सूतिकाकर्म करने केलिए वहां (जन्मस्थान में) दिक्कुमारियां आईं। वे इस प्रकार से (१) आठ दिक्कुमारियां अधोलोक से आयीं। माता और प्रभु को वंदन नमस्कार करके ईशान कोण में एक प्रसूतिघर बनाया तथा संवर्तक वायु से भूमि को साफ किया । (आठों के नाम दिये हैं) (२) आठ दिक्कुमारियां उर्ध्वलोक से आई। माता-पुत्र को नमस्कार करके सूतिकाघर में सुगंधित जल और पुष्पों की वृष्टि की एवं हर्षित होकर गीतगान करने लगीं. (आठों के नाम दिये हैं। (३) आठ दिक्कुमारियां रुचक द्वीप के पर्वत की पूर्वदिशा से आई और मुख देखने केलिये प्रभु के सन्मुख दर्पण रखती हैं। (आठों के नाम०) (४) आठ दिक्कुमारियां पर्वत