Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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क्षत्रियकुंड
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जन्मस्थान की है। ऐसा मानकर ही यहां उन लोगों ने दिगम्बर मंदिरों की स्थापनाएं की। आज तक ये लोग इसे ही जन्मस्थान मानकर वहां यात्रा - दर्शन-पूजा-अर्चना के लिये जाते रहे हैं।
वर्तमान में दिगम्बर मुनि और गृहस्थ विद्वान स्व० कामताप्रसाद और स्व. डा. हीरालाल जैन आदि कुंडलपुर को जन्मस्थान मानने में भूल स्वीकार कर चुके हैं। वे कहते हैं कि हम दिगम्बर जैनों ने पुरातत्व और "ऐतिहासिक प्रमाणों के अधार पर नहीं केवल कुंडपुर के नाम साम्य से तथा भ्रांत जनश्रुतियों के आधार पर कुंडलपुर में भगवान महावीर के जन्मस्थान की स्थापना कर दी थी । ' वास्तव में ऐतिहासिक दृष्टि से वैशाली भगवान महावीर का जन्मस्थान है।
(२) अब इनकी नयी मान्यता वैशाली की भगवान महावीर के जन्मस्थान मानने पर विचार करें
(क) दिगम्बर विद्वान स्व. कामनाप्रसाद अपनी पुस्तक भगवान महावीर पृ. ५५ में लिखता है कि
"शोभे दक्षिण दिश गुणमाल, महाविदेह देश रसाल। ताके मध्य नाभियत जान कुंडलपुर नगरी सुखधाम ।।१।। इस पद्य में कंडलप नगर को महाविदेह में कहा गया है।
(ख) स्व. डा. हीरालाल लिखते हैं
(१) दिगम्बर पुष्पदंत कृत महाप्राण में कहा है कि "जम्बुद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित कुंडपर के राजा सिद्धार्थ और रानी प्रियकारिणी (त्रिशला ) के यहां चौबीसवें तीर्थंकर महावीर का जन्म होगा।"
इस से इतना तो स्पष्ट है कि भगवान का जन्मस्थान कडपर है। पर कौन से जनपद में है, इस का उल्लेख नहीं किया गया। (२) दिगम्बर पूज्यपादस्वामी कृत निर्वाणर्भाक्त में कहा है कि- "राजा सिद्धार्थ के पत्र महावीर का जन्म भारतवर्ष के विदेह कंडपुर में हुआ । "
इस पद्य में कुंडलपुर नगर को महाविदेह में कहा है।
(ख) डा. हीरालाल जैन कहते है कि ( 3 ) दिगम्बर जिनसेन ने हरिवंशपुराण में कहा है कि
"जम्बुद्वीप के भरतक्षेत्र में विशाल विख्यात और स्वर्ग के समान विदेह देश में कुंडपुर नाम का नगर ऐसा शोभायमान दिखाई देता है मानो वह जल का कुंड ही हो तथा जो इन्द्र के सहस्र नेत्र की पंक्ति रूपी कमल मे मंडित हैं। ""