Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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बर्धमान खेलने गये
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की दक्षिण दिशा से आकर स्वर्ण कलशों को (सुगंधित) जल से भरकर स्नानं कराने के लिये सन्मुख खड़ी रहती हैं एवं गीतगान और नाटक करती हैं। (आठों के नाम०) (५) आठ दिक्कुमारियां पर्वत की पश्चिम दिशा से आकर मातापुत्र at नमस्कार करके हवा करने केलिये हाथों में पंखे लेती हैं। (आठों के नाम) (६) आठ दिक्कुमारियां पर्वत की उत्तर दिशा से आकर हाथों में चंवर लेकर ढोलाती हैं। (आठों के नाम)। (७) माता पुत्र को नमस्कार करके चार दिक्कुमारियां पर्वत की विदिशाओं से आकर हाथों में दीपक ले कर खड़ी रहती हैं। (चारों के नाम) (८) चार दिक्कुमारियां द्वीप की विदिशाओं से आती हैं और भगवान की चार अंगुल नाल काट कर धरती में गाड़ देती हैं। 34 (चारों के नाम दिये गये हैं) अतः यहां पर्वत और द्वीप (समतल भूमि) से छप्पन दिक्कुमारियों का भगवान महावीर का जन्मोत्सव मनाने केलिये आने का स्पष्ट उल्लेख है। क्षत्रियकुंडनगर के समीप आज भी वह पर्वत जिस पर से दिक्कुमारियां माता त्रिशला के पास प्रभु का जन्मोत्सव मनाने आईं थीं, विद्यमान है और उस का नाम आज भी feesरानी प्रसिद्ध है। जिसका अर्थ होता है दिक्क+रानी। यानि त्रिशलारानी के पास दिक्कुमारियों ने उपस्थित होकर बड़ी श्रद्धा और भक्ति से प्रभु का जनमोत्सव मनाया था। इस से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि त्रिशला सामान्य क्षत्रियाणी नहीं थी किन्तु रानी थी और सिद्धार्थ उसका पति होने से अवश्य राजा था। सामान्य क्षत्रिय उमराव नहीं था।
३-४ राजकुमार वर्धमान ( महावीर ) का खेलने को जाना
बाल्यावस्था में वर्धमान ( महावीर ) अपने बाल - सखाओं के साथ खेलने गए। वहा पर्वतघाटी पर आमलकी (आंवले ) के पेड़ पर एक भयंकर सर्प लिपट कर मुंहफाड़े फुफकार करने लगा। ऐसा भयंकर दृश्य देखकर डरके मारे वहां से सब बालक भाग खड़े हुए। पर बर्धमान ने निर्भयता पूर्वक उस सांप को मजबूत हाथों से पकड़ कर दूर फेंक दिया। यह खेल भगवान महावीर का आमलिकी कीड़ा के नाम से प्रसिद्ध है। पश्चात् सब बालक इकट्ठे होकर गेंद खेलने लगे इस में भी वर्धमान जीते। राजकुमार वर्धमान महावीर क्षत्रियकुंड में पर्वतघाटियों पर प्राय: गेंद खेलने जाया करते थे। गेंद को अर्धमागधी भाषा में 'किंदुअ' कहते हैं। अतः वे दोनों पर्वतघाटियां जहां कुमार वर्धमान खेलने जाया करते थे आज भी उनके नाम किंदुआणि प्रसिद्ध है। 35