Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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आ विजयेद्र मार की मान्यता में जन्मे थे, इसलिये वे ज्ञातपुत्र के नाम से भी विख्यात थे। ईसवी सन् १९०३ से १९१४ तक वैशाली की खुदाई का काम हुआ। उसके खण्डहरों से आज एक मील के घेरे वाला गढ़ है। गढ़ के वायव्य कोण में अशोकस्तूप, मर्कटहृद यानि रामकण्ड है। पश्चिम में एक मंदिर के पास जिन, बुद्ध और शिव आदि की खंडित मूर्तियां भी मिली हैं। खोदकाम से प्राचीन सिक्के भी मिले हैं। गढ़ के वायव्य कोण में एक मील पर बनियांगांव है पास में अशोकस्तंभ है। वहीं बौद्धसंघाराम (मंदिर-मठ) भी है। दो मील दूर कोलबागांव है। ईशानकोण में वासुकंड और पूर्व में कामनछपरागाछी गांव है। कोलवा, बसाढ़ और बनिया के पर्व नदी का पराणा तट है। जिसका नाम न्योरीनाला (नेवली नाला) है आज वहां खेती होती है। (वैशाली पुस्तक पृष्ठ. ६ से २२)।
चीनी यात्री फाहियान लिखता है। कि वैशाली के दक्षिण में ३ ली (५ ली -१ मील) पर आम्रपालि वैश्या का बाग है जिसे उसने बुद्ध को दान दिया था ताकि वे उसमें रहें। बद्ध अपने परिनिर्वाण के लिये जब अपने शिष्यों सहित वैशाली नगर के पश्चिम से निकले तो दाहिनी ओर वैशाली नगर को देखकर उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि यह मेरी अन्तिम विदा है। लोगों ने वहां स्तूप बनाया।
श्रेणिक की लिच्छिवी रानी चेलना जो विदेह नरेश चेटक की छोटी पुत्री थी। उसने अजातशत्रु (कोणिक) को जन्म दिया था। इसलिये वह विदेहीपुत्र कहलाया।
वसाढ़ के ईशानकोण में विद्यमान वासुकंड ही प्राचीन क्षत्रियकुंड है आचार्य नेमिचन्द्र सूरि महावीर चरिय में लिखते हैं कि
अत्यि इह भारहेवासे मजिजाम देसस्स।
मंडनं परम सिरि कुंडग्गाम नयरं वसमइ रमवीतिलयभूयं; से पहचान कराते हैं। इससे भगवान मध्यप्रदेश एवं विदेह। के थे ऐसा लगता है। आचारांगसत्र में णाय णातपुत्ते णायकुलचंदे, विदेहे विदेहदिन्ने विदेहजच्चे विदेहसुमाले तीस वासाइं विदेहसि कट्ट। यह पाठ कल्पसत्र सूत्र ११० में भी आया है: और त्रिशला रानी के लिये- "तिसलाइंवा विनेहदिन्नाइ वा पियकारिणी वा"- पाठ है। जिसमें भगवान को विदेह एवं विशाला को विदेहदिन्ना कहा है। विदेह का नाम माता के कल के माथ सम्बन्ध रखता है। त्रिशला माता वैशाली के राजा चेटक की वहन थी। वह कटम्ब विदेह नाम मे प्रसिद्ध था। इलिये त्रिशला विदेहदत्ता नाम से पहचानी जाती थी।