Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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दिगंम्बर मान्यता
५. प्रो० योगेन्द्र मिश्र ने भी वैशाली के निकट कुंडग्राम को माना है। ६. इन उपर्युक्त सबके अतिरिक्त इनका अन्धानुकरणकर्ता भी अनेक हैं।
दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यता
भगवान महावीर का जन्मस्थान दिगम्बर सम्प्रदाय नालन्दा के निकट बड़गांव को कुंडलपुर मानता है। कहता है कि राजगृही के निकट नालन्दा से दो मील की दूरी पर यही कुंडलपुर भगवान महावीर का जन्मस्थान है। 19
प्राचीन जैनागम एवं श्वेताम्बर जैनों की
मान्यता
अर्धभागधी भाषा में प्राचीन जैनागम आचारांग कल्पसूत्र आदि मूल उनपर लिखी गई नियुक्ति, चूर्णी, टीका, भाष्य आदि सब ने एकमत से भगवान महावीर का जन्मस्थान मगध जनपद में कुंडग्गाम (कुंडग्ग्राम) बतलाया है। यह ग्राम क्षुद्र (छोटा) नहीं था। अपितु महाग्राम-नगर था। इसके लिये ग्राम, पुर, नगर, सन्निवेश आदि शब्दों का प्रयोग मिलता है। इसके दो मुख्य विभाग थे दक्षिण में माहणकुंडग्गाम ( ब्राह्मणकुंडग्राम) एवं उत्तर में खत्तीयकुंडग्गाम ( क्षत्रियकुंडग्राम ) यह ब्राह्मणों और क्षत्रियों का सम्मिलित महानगर था। भगवान महावीर के जीवनचरित्र में भी इस महानगर के दोनों भागों को समानरूप से स्थान दिया गया है। अनुश्रुति है कि भगवान महावीर ने सर्वप्रथम ब्राह्मणकुंडग्राम के ऋषभदत्त ब्राह्मण की भार्या देवनन्दा के गर्भाशय में भ्रूण रूप धारण किया था। लेकिन वहां से यह भ्रूण क्षत्रियकुंड के राजा सिद्धार्थ की भार्या त्रिशलादेवी क्षत्रियाणि के गर्भाशय में स्थानान्तरित कर दिया गया। क्योंकि तीर्थकर क्षत्रिय : राजरानी के गर्भ से ही उत्पन्न होते हैं। ब्राह्मण आदि किसी अन्य वर्ण की स्त्री के गर्भ से अथवा हीनकुल में नहीं। इसका वर्णन हम विस्तार से भगवान महावीर की जीवनी में कर आये हैं। कुंडग्राम के भौगोलिक परिवेश में आनेवाले आस-पास के कुछ स्थानों का विवरण भी प्राचीन जैनागमों में मिलता है। क्षत्रियकुंड के बाहर ईशानकोण में पायवंजखंड नामक एक उद्यान कुंडपुर के गाय ( ज्ञात) क्षत्रियों का था । गृहत्याग के बाद