Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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महावीर के मिद्धांत गरिमा २०० वर्ष बाद) आचार्य स्थलभद्र (जो ११ अंगों और १२ वें अंग के १० पौं के सार्थ तथा शेष १२ वें अंग के ४ पर्वो के मल मत्रों के ज्ञाता ) ने १२ वर्षीय दष्काल के बाद मगध की तत्कालीन राजधानी पाटलीपत्र (पटना) में भगवान महावीर के धर्म सत्रों को व्यवस्थित रूप देने के लिये जैन मनियों की एक वृहत-सभा का आयोजन किया। जिसमें जैन-मत्रों का वाचन किया गया।
जैन आगम सूत्रों की यह प्रथम वाचना पार्टीलपत्र वाचना के नाम से प्रमिद्ध है। लिभद्र के उत्तईधकारी आचार्य महाािर तथा आचार्य महम्तिन हाए। आचार्य महास्तिन मौर्यसम्राट चंद्रगप्त के पौत्र सम्राट मम्प्रति के धमंगम थे। जैन सत्रों की दमरी वाचना आय कंदिल की अध्यक्षता में (३० मे ३१३ ई.) मथग में हई। जिस में उस समय के जैन श्रमणों में जो मंग्रह किया गया उमे आगमों के रूप में मलित कर लिया गया। यह माथरी वाचना कहलायी। उसी समय इसी प्रकार का एक और प्रयास आचार्य नागाजन की अध्यक्षता में वल्लभी (सौराष्ट्र) में भी हआ। चौथी वाचना पाचवीं शताब्दी के उत्तगढ़ (6५१ म ४६६ ई.) में पर्व की वाचनाओं को देवद्धि गण क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में फिर वल्लभी (मौगष्ट्र) मे हयी। विभिन्न पाटानगे का समाधान करके मत्रागमा को लिपिवद्ध कर लिया गया। यह वल्लभी वाचना कहलाती है। जो आज तक श्वेताम्बर जैनो के पाम मर्गक्षत है।
इन उपयंक्त आगमा के विषय में दिगम्बर प्रकार विद्वान म्व. डा. हीगलाल जैन M.A D. जो वशाली प्राकृत विश्वविद्यालय के मवं प्रथम कलपति थे। जिन्होने दिगम्बर धवला आदि अनेक ग्रंथो का विद्वतापवंक मपादन किया है तथा अनंक ग्रथा की शांध-खोज पवक रचना भी की है। उन्होंने म्वीकार किया है कि-वीर निवांग की दसवीं शताब्दी म मनियों की एक महामभा गजगत प्रांतीय वल्लभी (वर्तमान वला) नाम की महानगर्ग में की गई और यहा क्षमाश्रमण देवद्धिंर्गाण की अध्यक्षता में जैनागमा का सकलन किया गया। जा अव भी उपलब्ध है ... वे प्राचीन शैली को वोधकगन के लिये पयात है। उन का प्राचीनतम बौद्ध माहित्य में भी मेल खाता है। जिस प्रकार बौद्ध साहित्य त्रिपिटक कहलाता है वैसे ही यह जैन माहित्य गणिपिटक के नाम में इल्लिखित पाया जाता है। यह ममम्त माहित्य अपनी भाषा शैली तथा दानिक व ऐतिहामिक सामग्री के लिये पाली माहित्य के ममान ही महत्वपणं है।।।