Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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(XXVIII)
मेरी अंतिम रचना होगी। इसलिये इसका प्रकाशन (हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में) यथाशीघ्र कोई ख्यातनामा संस्था करके सर्वव्यापक प्रचार-प्रसार करे तो मुझे तभी प्रसन्नता होगी।
इस शोधग्रंथ को लिखकर मैं अपने कृतसंकल्प में सफल हूँ। अब इसे प्रकाशित करके अधिक से अधिक प्रचार और प्रसार करना जैनसंघ का काम है। दो वर्ष केबाद गणि कला प्रभुसागर ने भी पांडुलिपि लौटा दी पर प्रकाशित नहीं करा पाये।।
आज से चार-वर्ष पहले जैनश्वेतांबर अचलगच्छीय आचार्य प्रवर श्री गणसागर सूरि जी तथा उन के अन्तेवासी गणि श्री कलाप्रभसागर जी ने भगवान के जन्मस्थान लच्छाड़ के निकट भत्रियकंड के प्रचार-प्रसार और उद्धार के कार्य को सम्पन्न करने केलिये अपने हाथ में लिया है। उन्होंने दिनांक २४, २५, २६ नवम्बर १९८४ को सर्वप्रथम सम्मेतशिसर महातीर्थ की तलहटी मधुवन (बिहार राज्य) में भगवान महावीर के वास्तविक जन्मस्थान के सम्बन्ध में अखिलभारतीय इतिहासज्ञ विद्वतसम्मेलन का आयोजन किया। इसमें सर्वसम्मति से निर्णय पाया कि लच्छुआड़ के निकट कंडपुरनगर ही भगवान महावीर का वास्तविक जन्मस्थान है। इस सम्मेलन में मैंने अपने प्रवचन में कहा था कि इस निर्णय के बाद इस तीर्थ के सर्वत्र प्रचार-प्रसार और उद्धार का प्रारंभ समझकर अब कार्य सतत चाल रखना है। कहीं यह न समझ लिया जाय कि सम्मेलन में निर्णय करके बाद इसकी इतिश्री हो गयी है।
अतः इस कार्य की सफलता केलिये अनेकविध कार्य करने होंगे यथा
१. पाठ्यपुस्तकों से वैशाली की मान्यता के बदले क्षत्रियकुंड की मान्यता को दाखिल करना। २. भारत सरकार से क्षत्रियकंड की मान्यता को स्वीकार कराना। ३. इस क्षेत्र के सब मंदिरों का जीर्णोद्धार कराना और उनकी सुरक्षा, पूजा की व्यवस्था प्रतिदिन केलिये कराना। ४. इस कार्य को स्थाई व्यवस्थित रखने केलिए पेढी की स्थापना करना। ५. यात्रियों की सुविधा केलिये बिहार सरकार के सहयोग से प्रत्येक मंदिर में जाने-आने केलिये रास्तों को जंगलों झाड़ियों से साफ कराकर सड़कों का निर्माण कराना जिससे आने-जाने में सुगमता हो। ६. कोषों में वैशाली के बदले क्षत्रियकंड को जन्मस्थान लिखवाना। ७. इस जन्मस्थान केलिये अपने समाज में जागति लाने केलिये सब साधु-साध्वियां जहां भी विचरें वहां अपने व्याख्यानों में इसका प्रचार करें तथा देश-विदेश में प्रचार केलिये पुस्तकों के माध्यम से एवं भाषणों से प्रचार किया जावें। ८. इस तीर्थ संबंधी प्रामाणिक इतिहास पस्तकें तथा इतिहास के छोटे-छोटे फोल्डर, पाकेटपुस्तकें सब देशी-विदेशी भाषाओं में प्रकाशित करके सस्तेदामों से सर्वत्र प्रचार प्रसार किया जावे। ९. इसी उद्देश्य को लक्ष्य में रखकर मैने यह शोध-पस्तक लिखी है। इसका सब भाषाओं में भाषांतर करवा कर प्रकाशन हो और संस्था इसे प्रकाशित करे। वह धन कमाने केलिये नहीं परन्तु इस तीर्थ के सर्वत्र प्रचार केलिये स्वल्प (कम) मूल्य रखे। १०. अपने सब तीर्थों के माध्यम से वहां की पेढ़ी से इस पुस्तक की बिक्री की व्यवस्था की जावे। ११. जिस-जिस व्यक्ति के हाथ में यह पुस्तक जावे उसका भी परमकर्तव्य है कि वह अपने नगर में गांव में सब पुरुषों-महिलाओं को इस पुस्तक को मंगवाने की प्रेरणा करे और ग्राहक बना कर पुस्तकें मंगवा लें १२. यह