Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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(XXII)
प्रमाणिक इतिहास की आवश्यकता स्वजाति-पूर्वजानां यो न जानाति संभवम्।
स भवेत् पूश्चलीपुत्र सदृशः पितृवेदकः।।१।। अर्थात्- अपने पूर्वजों के विषय में जो जानकारी नहीं रखता वह उस कुल में कुलटा स्त्रीके पुत्र के समान है जिसे अपने पिता के विषय में ही पता नहीं है।
इतिहास-प्रदीपेन मोहावरण-धतिनः।। सर्वलोक धृतं गर्भ यथावत्वं प्रकाशयेत् ।।१।।
(सत्यकेतु विद्यालंकार) अर्थात् इतिहास एक ऐसा दीपक है जो भमरूपी अंधकार को नष्ट करता है। जिस का प्रयोजन संसार की घटनाओं, आधारभत बातों व सही-तथ्यों पर प्रकाश डालना है। दीपक द्वारा जैसी वस्तु होती है वैसी ही दिखलाई देती है। यह किसी से पक्षपात नहीं करती। इतिहास का भी ठीक यही प्रयोजन है।
किन्त इतिहास केलिये यह आवश्यक है कि वह प्रामाणिक हो और निष्पक्ष-बद्धि से लिखा गया हो।
इतिहास राष्ट्र, समाज और धर्म का प्राण है। राष्ट्र, समाज, धर्म की उच्चता इतिहास की उच्चता पर ही निर्भर करती है। अतएव इतिहास एक ऐसा महत्वपूर्ण विषय है कि जो सच्चे साहित्य का आधार है। जिस काव्य में सच्ची ऐतिहासिकता नहीं है वह कवि की कोरी-कल्पना ही है। वह मनोविनोद के सिवाय किस काम का? बड़े बड़े राजनीतिज्ञों का कथन है कि जिस राष्ट्र, समाज, संस्कृति को नष्ट करना हो, उसकी भाषा, साहित्य, आदशों, शास्त्रों, लिपि, और स्मारकों को नष्ट कर देना चाहिए। अतः किसी राष्ट्र, समाज, धर्म का इतिहास बिगाड़ देना अक्षम्य महान अपराध है।
कितने ही दायित्वशून्य लेखक अपनी कल्पनाओं का प्रदर्शन करते हुए कुछ का कुछ लिख बैठते हैं। इस से यथार्थ का लोप हो जाने से अनर्थ हो जाता है। चाहिये तो यह कि जो भी ऐतिहासिक चर्चा की जाय वह पूरे अन्वेषणपूर्वक हो। इस सम्बन्ध में बड़े-बड़े इतिहासज्ञ भी धोखा खा जाते हैं।
भगवान महावीर के जन्मस्थान के विषय में भी ऐसा ही हुआ है। इसलिए बावश्यक हो जाता है कि जो इस पर शोध-खोजकर्ताओं ने लिखा है, उन भांत मान्यताबों पर प्रकाश डालकर. सही निर्णय किया जावे।
जैनधर्मके चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर का जन्म क्षत्रियकंडनगर के राजा सिद्धार्थ के घर हुआ था। यह क्षत्रियकुंडग्राम नगर कहां था? इसके सम्बन्ध में अमोत्पादक बातें लिखी पायी जाती हैं।
इस सत्य को कोई मुठला नहीं सकता कि श्रमण भगवान महावीर का जन्म कंडग्राम में हुआ था। परन्तु कुछ पाश्चिमात्य इतिहासकारों की भ्रमपूर्ण स्थापनाओं के प्रभाव में आकर कतिपय भारतीय विद्वानों ने भी कंडग्राम की अवस्थिति को विवादग्रस्त बना दिया है। इस संबंध में विद्वानों की अलग-अलग स्थापनाएं हैं।