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"वैसे समयकी परिस्थिति और प्रभू पार्श्वके प्रति आधुनिक विद्वानोंके अयथार्थ उद्गार भी इसमें कारणभूत हैं। फिर जरा यह सोचने की बात है कि प्रभु पार्श्व आखिर एक मनुष्य ही थे - मनुष्यसे ही उनने परमोच्च - परमात्मपद प्राप्त किया था- मनुष्यके लिए एक मनुष्य ही आदर्श होसता है और मनुष्य ही मनुष्यको पहचानता है उससे प्रेम करता है और अपने प्रेमीपर वह सब कुछ न्योछावर कर डालता है । यही कारण है कि इस कालके पूज्य कविगण जैसे श्री... गुणभद्राचार्यजी महाराज, श्री वादिराजसूरिजी, श्री सकलकीर्तिजी, कविवर भूधरदासजी आदि अपने प्रभु-भक्ति प्लवित हृदयकी प्रेमपुष्पांजलि इन प्रभु के चरणकमलों में समर्पित कर चुके हैं। अपना सर्वस्व उनके गुण - गानमें वार चुके हैं। इन महान् कविवरोंका अनुकरण करना धृष्टता जरूर है; पर हृदयकी भक्ति यह संकोच काफूर कर देती है और प्रभूके दर्शन करनेके लिये बिल्कुल उतावला बना देती है । इस उतावलीमें ही यह अविकसित भक्ति-कर्णिका प्रभू पार्श्वके गुणगानमें आत्म लाभके मिससे प्रस्फुटित हुई है । विद्वज्जन इस उतावली के लिये क्षमा प्रदान करें और त्रुटियोंसे सूचित कर अनुग्रहीत बनावें ।
जैनधर्म में माने गये चौवीस तीर्थंकरों में से भगवान् पार्श्वना थी तेवीसवें तीर्थंकर थे । यह इक्ष्वाकु भगवान पार्श्वनाथजी वंशीय क्षत्री कुलके शिरोमणि थे । जब ऐतिहासिक व्यक्ति थे । यह एक युवक राजकुमार थे तबही से इन्होंने उस समयके विकृत धार्मिक वातावरणको सुधारनेका प्रयत्न किया था। जैनपुराणों में उन प्रभुका