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*भगवान महावीर का ज्ञान अनन्त था, उन के ज्ञान-वैभव का अन्त नहीं पाया जा सकता। प्रभु वीर का ज्ञान इतना सूक्ष्म और विशाल था कि उसका पार पाना सर्वथा असभव है । तथापि हम ने उसे यथाशक्ति समझना है और जीवन मे उसे उतारना है । भगवान महावीर के मुख्य-मुख्य सिद्धान्तों को सक्षेप में हम पांच भागों में बांट सकते हैं। और वे इस प्रकार है१- अहिंसावाद
२- अनेकान्तवाद ३- कर्मवाद
४-ईश्वरवाद ५-अपरिग्रहवाद इस पुस्तक में इन्हीं पांच सिद्धान्तों के सम्बन्ध में कुछ विचार किया जायगा। वैसे तो जैन शास्त्रों में इनके सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा गया है। यदि सब को लिखने लगे तो एक विशालकाय ग्रन्थ बन सकता है। किन्तु प्रस्तुत मे हमें विस्तार में नहीं जाना है । सक्षेप में ही उन का केवल कुछ परिचय कराना है । अत अधिक न लिख कर सामान्य रूप से ही इन सिद्धान्तों के सम्बन्ध में कुछ लिखा जायगा।
अहिसा-वाद आध्यात्मिक जगत में भगवती अहिंसा को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त रहा है । अहिंसा आध्यात्मिक साधना की प्राथमिक भूमिका है, उस की आधारशिला है । मानवजीवन का उज्ज्वल प्रकाश अहिंसा की अमर भावना मे ही निवास कर रहा है। अहिंसा ही संसार रूप
*भगवान महावीर के जीवन-सम्बन्धी वृत्तान्ती तथा घटनायो को जानने के लिए स्वतंत्र रूप से भगवान महावीर के जीवन-चरित्र का अध्ययन करना चाहिए। 'अहिंसैव हि संभार-मरावमृत-सारणि' । (योग शास्त्र)