Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 209
________________ (१९१) तिजोरियो को मुह तक भरने की नीचभावना ही यहा काम कर रही है । यदि मनुष्य अपरिग्रहवाद को अपना कर इस सग्रहवृत्ति का परित्याग कर दे, अपनो आवश्यकता के अनुसार ही वस्तुओ का संग्रह रखे और अनावश्यक सग्रह को समाज के उन दूसरे लोगो को सौप दे, जिन को उस की आवश्यकता है, तो आज दुनिया मे जितनी अशान्ति दृष्टिगोचर हो रही है, वह या तो धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी या अपेक्षाकृत बहुत कम पड जायेगी। इसके अलावा, सम्पत्ति के बटवारे का जो प्रश्न ससार के सामने है, वह भी बिना किसी कानून के स्वय ही बहुत कुछ अशो मे समाहित हो जायेगा। कितना आश्चर्य और खेद का स्थान है कि एक ओर सम्पत्ति ट्रको मे पडी सड़ रही है और दूसरी ओर अग ढापने को कपडे की एक तार भी नसीव नही होती । एक ओर हजारो प्राणी भूख से बिलबिला रहे हैं और अन्न के अभाव मे तडप-तडप कर प्राण दे रहे है, और दूसरी ओर धनी व्यापारी अन्न का अनावश्यक सचय करके बैठे हुए हैं। एक ओर भोजन के पचाने के लिए चूर्णों का प्रयोग किया जाता है, अजीर्णता से लोग व्याकुल हैं और दूसरी ओर लोग पेट को बल देकर दिन बिता रहे है,और जूठी पत्तले चाटकर जीवन का निर्वाह कर रहे है। इस प्रकार दिल दहलाने वाली विषमता सर्वत्र नग्न-नृत्य कर रही है । इसी विषमता के कारण आज परिवार, समाज और राष्ट्र का अन्त स्वास्थ्य दूषित हो रहा है। सर्वत्र अशान्ति और दुख के चीत्कार सुनाई पडते है । सब राष्ट्र इन दुखो की इस आग पर शान्ति का पानी डालना चाहते है । इस के लिए नाना उपाय किए जा रहे है । कई

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