Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 213
________________ (१९५) हो परन्तु सासारिक और गार्हस्थिक दृष्टि से भी वह लाभ मे रहेगा। वह व्यथ मे हाय-हाय करने से बच जायेगा और साथ मे अधिक धन जुटाने से भी छुट्टी पा लेगा। सन्तोप रूपी धन अनुपम धन है। ससार का कोई भी धन उसके समान आनन्दप्रद नही हो सकता। इसीलिए कबीर ने कहा है गो धन, गज धन, बाजिधन, और रतन धन खान । जब आवे सन्तोप धन, सव धन धलि समान । । वास्तव मे तृष्णा की पूर्ति से मनुष्य की तृप्ति न कभी हुई है और न कभी हो सकती है । सपहवृत्ति धारण करने से और अपरिग्रह के नियम का उल्लघन करने से लालसा बढती ही चली जाती है । इसीलिए एक हिन्दी कवि कहते हैजो दस बीस पचास भए, शत होए हजारन लाख मगेगी। कोटि अरब खरब्ब असख,पृथ्वीपति होने की चाह जगेगी।। स्वर्ग पाताल को राज करो,तृष्णा अधिको अति आग लगेगी। सुन्दर एक सन्तोप बिनाशठ ,तेरी तो भूख कभी न भगेगी।। ऐसी है परिग्रह की भीषण आग । इसीलिए भगवान महावीर ने इस को त्याज्य वतलाया है, और अपरिग्रहवाद को जीवनागी वनाने की पवित्र प्रेरणा प्रदान की है। परिग्रह के दुष्परिणाम-- __ परियह संसार का सव से वडा पाप है । आज ससार के सामने जो जटिल समस्याए उपस्थित है, समाज और राष्ट्र मे विपमता, कलह और अशान्ति दिखाई दे रही है । गभीरता

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