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(३१) । सुझाव दिया गया कि लोगों को भोजन की आदतो और धार्मिक । भावनाओं में क्रान्ति करके पालतू गाय आदि पशुश्री को भोजन + के स्थान पर काम में लाना चाहिए ।
' द्वितीय पंचवर्षीय योजना में गोवध जारी रखने का उल्लेख है । इस योजना में मछली उत्पादन के लिए १२ करोड़ रुपए व्यय करने का उल्लेख है। मुर्गियों और उनके अण्डो के उत्पादन के लिए ३ करोड की व्यवस्था है।
स्वराज्य प्राप्त होने के पूर्व भारत में मांसहारियों की संख्या बहुत कम थी परन्तु सरकारी सहयोग और प्रोत्साहन से आज उन की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है। आज शायद ही कोई चाय की दुकान बची होगी जहा अण्डे न बिकते हों। इसी प्रकार होटल भी कोई आप को ऐमा मिलेगा. जहा मांस न पकता हो । जिन विदेशियो को भारतवासी म्लेच्छ तक कहते थे, और अब भी कह रहे हैं, उन लोगों की तो यह दशा है कि वे पशुधन को संभाल कर रखने है और उस की इतनी सेवा करते हैं कि उनके यहां दूध और घी की कोई कमी नहीं है। वे दूध घी इतना उत्पन्न करते हैं कि अपनी भावश्यकताओं की पूर्ति करके भी भारत को लाखों टन दूध, घी और मक्खन भेजते है, पर 'गोविन्द हरे, गोपाल हरे' का गीत गाने वाला भारत विदेशियों को अमृत के बदले गोमाता के चमडे, आंत, जिगर, ची,
आदि भेजता है । जिस देश में विदेशी प्रतियि पानी मागने पर दूध से भरा गिलास पाते थे वही देश भारत आज विदेशियो को गाय, बछड़े, भेड़, बकरी, भैस आदि के चमड़े, हड्डो, मांस, चर्ची सुग्वाया हुआ खून तथा मछली आदि पदार्थ भेजता है। विदेशी दूध देते हैं भारत मांस:-- यह कैसी विडम्बना है कि हिंसक वृत्ति वाले भौतिकवादी राष्ट्र