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न्तवाद का विश्वास है-जो कहता है कि श्रारमा नित्य ही है, वह भूलता हैऔर जो कहता है-श्रात्मा अनित्य ही है, वह भी भूल करता है। वास्तव में प्रात्मा नित्यानित्य है, नित्य भी है और अनित्य भी है। ससारी अस्मा कभी मनुष्य की पर्याय (अवस्था) में तथा क्भी पशु भादि की पर्यायां मे गमनागमन करती रहती है, नट की भांति अनेकों रुप धारण करती है। इस दृष्टि मे आत्मा अनित्य है तथा आत्मा मनुष्य पशु आदि किसी भी पर्याय में रहे किन्तु वह रहती आत्मा ही है, अनात्मा नहीं बन जाना । ज्ञान दर्शन स्वरूप उपयोग से प्रात्मा कभी भी शून्य नहीं होती। हम दृष्टि से प्रारमा नित्य है । इस प्रकार आत्मा को नित्यानित्य मान लेने पर ही दार्शनिक जगत का धर्म द्वन्द्व उपशान्त हो सकता है और सर्वत्र शान्ति की स्थापना की जा सकती है। एकान्तवाद का परिहार करके भगवान महावीर ने इसी अनेकान्तवाद की दिव्य औषध से उस समय राष्ट्र के अन्तःस्वास्थ्य को सुरक्षित रखा था। ___अनेकान्तवाद कहता है कि प्रत्येक पदार्थ नित्य भी है और अनित्य भी है। पाठक इस बात से अवश्य विस्मित होंगे और उन्हें सहसा यह विचार आयगा कि जो पदार्थ नित्य है, वह भला अनित्य कैसे हो सकता है १ ओर जा अनित्य है वह नित्य कैसे हो सकता है ? परन्तु गभीरता से यदि चिन्तन किया जाए तो यह ममस्या स्वतः समाहित हो सकती है। कल्पना करो । सोने का कुण्डल है । हम देखते हैं कि वही कुएडज स्वर्णकार द्वारा हार बना दियागया वह हार पुनः कहा बना दिया गया, कड़ा भी पुनः किसी
अन्य आकार में परिर्वितत कर दिया जाता है। इस से यह स्वत. सिद्ध हो जाता है कि कुण्डल आदि कोई म्वतत्र द्रव्य नहीं है, बल्कि सुवर्ण का एक आकारविशेष है और वह आकारविशेष सुवर्ण से सर्वथा