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है। एक ही रेखा में छोटापन और बड़ापन ये दोनो धर्म अपेक्षा से ही रह रहे हैं। अनेकान्तवादी तीन इंच की रेखा को "यह छोटी ही है "या "बडी ही है" इन शब्दों से नहीं कहने पाता। वह भी शब्द का प्रयोग करता है । वह कहता है- यह छोटी भी है, और यह बडी भी है। क्योंकि अपेक्षाकृत उस में बापन और छोटापन ये दोनों धर्म निवास कर रहे हैं।
अनेकान्तवाद और हठवादः
अनेकान्तवाढ मनुष्य को सहिष्णुता के साथ पदार्थ के सभी धर्मों पर दृष्टिपात करने की मधुर प्रेरणा प्रदान करता है। हठ या जिद का अनेकान्तवाद के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। अनेकान्तवाद हठ के परित्याग पर बल देता है। हर किसी भी दशा में हितावह नहीं हो सकता । हठवाद ने ही द्वैतवाद, अद्वतवाद, नित्यवाद और अनित्यवाद को जन्म दिया है। हठवाद सघर्षों की जन्मभूमि है । हठवाढी लोगों ने ही धर्म को सम्प्रदायों का वेष पहना कर उसे झगड़े की जड़ बना दिया है। धर्म में जितने विकार आए हैं, उन का उत्तरदायित्व हठवाद पर है । वर्म के विकृतरूप से युरोप में जो नास्तिकवाद बल पकड गया है, और परिणाम स्वरूप रूस ने धर्म को जो सर्वथा तिलाजिल दे डाली है, इस का उत्तरदायित्व भी हठवाद पर ही है। हठवाढ एक भीपण अन्धकार है। अनेकान्तवाद के दिवाकर के चमके बिना इम का नाश नहीं किया जा सकता है।
अनेकान्तवाद और सप्तभगीअनेकान्तवाद को सप्तभगी भी का जाता है। जब एक वस्तु
द्वतवाद मे जीव और ब्रह्म मे भेट माना जाता है तथा अद्वैतवाद म जीव और ब्रह्म का भेद नहीं माना जाता ।