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साधारणतया पदार्थों को हम जिस रूप में देखते है, वही उस का परा रूप नहीं होता । पदार्थों में अनेको अप्रकट गुण या शक्तिया विद्यमान हैं। जिन्हे जानने और समझने की नितान्त आवश्यकता है । विज्ञान ने इस दिशा में काफी प्रयत्न किए हैं। विज्ञान के पुरुषार्थ का ही यह परिणाम है कि पदार्थ की नई-नई शक्तियां प्रकाश मे श्रारही है । अणुशक्ति को ही ले लीजिए । यह शक्ति पहले सर्वथा अज्ञात थी। अब उस का पता चल गया है और इस की बदौलत संसार में भारी उथल-पुथल मच रही है । यह सत्य है कि वैज्ञानिक जिसे अणु कहते हैं, भगवान महावीर के सिद्धान्त के अनुसार वह अणु नहीं है । अणु तो अभी बहुत गहरी खोज का विषय है । तथापि विज्ञान के इस अन्वेषण से अह तो प्रमाणित हो ही गया है कि पदार्थ मे अनन्त धर्म अवस्थित हैं। अणुवाद का अन्वेपण करके विज्ञान ने अपने ढंग से भगवान महावीर के ही अनेकान्तवाद का समर्थन और पोषण किया है। विज्ञान द्वारा"-पदार्थों में अनेकों शक्तियां अविस्थत हैं।'-यही सत्य प्रमाणित किया गया है। इस में मतभेद वाली कोई बात नहीं है।
अनेकान्तवाद और अपेक्षावाद:
अनेकान्ववाद को अपेक्षावाद भी कहा जा सकता है। क्योंकि इम मे किसी भी पदार्थ को अपेक्षा में देखा जाता है और अपेक्षा से ही उम का वर्णन किया जाता है। बोर्ड पर खींची हुई तीन इच की रेखा मे अपेक्षाकृत बडापन और अपेक्षाकृत ही छोटापन रहा हुआ है। यदि तीन इंच की रेखा के नीचे पांच ईच की रेखा खींच दी जाए तो वह पांच इच की रेखा की अपेक्षा छोटी है और उसके ऊपर दो इच की रेखा खींच दी जाय तो वह ऊपर की रेखा की अपेचा बड़ी