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उपसहार भगवान महावीर का अनेकान्तवाद सिद्धान्त विश्व के समस्त दर्शनो, धर्मो, सम्प्रदायो, मतो, पन्थो का समन्वय करता है। वह विश्व को शिक्षा देता है कि विश्व के सभी धर्मों मे जहा-कही भी सत्याश है, उस का आदर करो और जो असत्याश है, उस को लेकर किसी से घृणा या द्वेष न करो। क्योकि घृणा या द्वेष आध्यात्मिक जीवन के सर्वोपरि शत्रु है । इन्ही से कर्म-जगत की सृष्टि होती है । आत्मा दुष्कर्मों के प्रवाह मे प्रवाहित हो जाती है। अत किसी से घृणा या द्वेष न रख कर, समता से सत्याश को ग्रहण करते हुए और असत्याश का परित्याग करते हुए जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास करना चाहिए।