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असह्य और भीषण उपसर्गों का सामना करना पड़ा, सगर चक्रवर्ती को एक साथ ६० हजार पुत्रो के मरण का दुख भुगतना पड़ा, छह खण्ड के नाथ सनत्कुमार चक्रवर्ती को १६ रोगो का भयंकर कष्ट सहन करना पड़ा, मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम को १४ वर्षो तक वनो की धूलि चाटनी पड़ी, कर्मयोगी वासुदेव कृष्ण को कारागार मे जन्म लेना पडा और पाण्डवो को बारह वर्ष सकट झेलने पडे, तथा अज्ञातवास मे समय व्यतीत करना पडा । यह सव कर्मशक्ति के प्रकोप का ही परिणाम था । इसीलिए यह मानना पडता है कि कर्मशक्ति सर्वोपरि है । इस के आगे सभी शक्ति निर्बल है । इस महाशक्ति पर जिस ने विजय प्राप्त करली है, वही ससार मे सुखी होता है, धीरेधीरे निष्कर्मता की पगडण्डियो को नापता हुआ एक दिन वह निर्वाण पद को उपलब्ध कर लेता है ।
कर्मसम्बन्धी प्रश्नोत्तर -
कर्म सिद्धान्त को लेकर जनमानस मे अनेको प्रश्न चक्र लगा रहे हैं । उन के सम्वन्ध मे भी कुछ विचार कर लेना आवश्यक है । आगे की पक्तियो मे उन्ही के सम्बन्ध मे प्रश्नोत्तर के रूप मे कुछ विचार प्रस्तुत किये जाएगे ।
प्रश्न -- जीव को अमूर्त और कर्म को मूर्त पदार्थ माना जाता है, ऐसी दशा मे इन का परस्पर कैसे सम्वन्ध होता है, ? अर्थात् मूर्त पदार्थ अमूर्त पदार्थ को केसे पकड़ लेता है
जिस पदार्थ मे रूप, रस, गन्ध, स्पर्श पाए जाते हैं, उसे मूर्त कहते है, जिसमे ये रूप श्रादि न हा, उसे अमूर्त कहा जाता है ।